ज्योतिरादित्य सिंधिया को पिछले 18 महीने में किस तरह प्रताड़ित किया गया, पढ़िए | MP NEWS

भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर ली है। पार्टी ज्वाइन करते हुए उन्होंने बिल्कुल नहीं कहा कि वह भाजपा की रीति नीति से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं बल्कि उन्होंने कांग्रेस में अपनी प्रताड़ना का दर्द बयान किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आज पहले जैसी नहीं रही। राष्ट्रीय स्तर पर विडंबना है, राज्य में अलग स्थिति है। कांग्रेस की इस स्थिति के तीन बिंदु हैं। वास्तविकता से इनकार करना, जड़ता का वातावरण और नई सोच व नए नेतृत्व को मान्यता न मिलना। आइए जानते हैं पिछले 18 महीने में है ज्योतिरादित्य सिंधिया को किस तरह से प्रताड़ित किया गया। 

2018 में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी लेकिन सीएम कैंडिडेट नहीं बनाया 

विधानसभा चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाईकमान की तरफ से मध्यप्रदेश में काम करने के लिए निर्देश दे दिए गए थे। उन दिनों कमलनाथ का जिक्र तक नहीं हो रहा था। अचानक कमलनाथ सक्रिय हुए। हाईकमान में जोड़-तोड़ की राजनीति कुछ इस तरह चली कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया गया जबकि सिंधिया समर्थकों ने मध्य प्रदेश की दीवारों पर लिखवा दिया था 'अबकी बार सिंधिया सरकार'। 

चुनाव के बाद विधायक दल ने मतदान नहीं किया, कमलनाथ को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया 

विधानसभा चुनाव के बाद विधायक दल की विधिवत मीटिंग नहीं हुई। विधायक दल ने फैसला हाईकमान पर छोड़ दिया और हाईकमान ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह दूसरा बड़ा झटका था क्योंकि कमलनाथ को हाईकमान ने फ्री हैंड दिया। जबकि माना जा रहा था कि हाईकमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को डिप्टी सीएम बनाएगा।

लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने केवल छिंदवाड़ा पर ध्यान दिया 

राज्य में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद लोकसभा चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में किसी तरह का विकास कार्य शुरू नहीं करवाया गया। सिंधिया समर्थकों का मानना है कि कमलनाथ ने जानबूझकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र के बजट रिलीज करने से मना कर दिया था। सिंधिया को ना केवल अकेला छोड़ दिया गया बल्कि अपने क्षेत्र पर ध्यान ना दे पाए इसलिए उन्हें आधे उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया। कमलनाथ मुख्यमंत्री होने के बावजूद केवल छिंदवाड़ा पर फोकस बनाए रहे। उन्होंने मध्य प्रदेश की किसी भी सीट पर काम नहीं किया।

कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी पसंद का बंगला तक नहीं दिया 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह किसी बड़े अपमान से कम नहीं था। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बावजूद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी पसंद का बंगला तक नहीं दिया बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपमानित करने के लिए उनकी पसंद का बंगला पहली बार सांसद बने नकुल नाथ को दे दिया गया। यह सब कुछ तब हुआ जब ज्योतिरादित्य सिंधिया चार इमली में बी-17 बंगला का व्यक्तिगत रूप से जाकर निरीक्षण भी कर आए थे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दायरे में रहकर नाराजगी जताई लेकिन गंभीरता से नहीं लिया 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सबसे पहले एक सीमित दायरे में रहकर अपनी नाराजगी जताई। 25 नवंबर 2019 को ज्योतिरादित्य ने ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल से कांग्रेस का नाम हटा दिया। केवल जनसेवक और क्रिकेट प्रेमी लिखा। संकेत स्पष्ट था लेकिन कमलनाथ ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

सड़क पर उतरने वाला बयान दिया तो कमलनाथ ने चुनौती सामने रख दी

14 फरवरी को टीकमगढ़ में अतिथि विद्वानों की मांगों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक प्रकार से कमलनाथ सरकार का बचाव करते हुए कहा था कि अभी किसी तरह का आंदोलन ना करें थोड़ा इंतजार करें। यदि वचन पत्र की मांग पूरी नहीं हुई तो मैं खुद आपके साथ सड़क पर उतर जाऊंगा। कमलनाथ ने सिंधिया के इस बयान की काफी तीखी प्रतिक्रिया दी। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बड़े ही अजीब से लहजे में जवाब दिया "तो उतर जाएं, और फिर ड्राइवर से कहा चलो"। तीन शब्द का यह बयान बगावत का कारण बन गया।

प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनने दिया, फिर राज्यसभा में भी टांग अड़ा दी 

लोकसभा चुनाव हारने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनना चाहते थे। उन्होंने अपनी इच्छा से हाईकमान को भी अवगत करा दिया था। सोनिया गांधी को कोई आपत्ति नहीं थी। घोषणा होने ही वाली थी कि अचानक कमलनाथ भोपाल से दिल्ली पहुंचे और सोनिया गांधी से मिले। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की घोषणा टल गई। जब राज्यसभा में उम्मीदवारी की बात आई तो कमलनाथ गुट के मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने प्रियंका गांधी का नाम आगे बढ़ा दिया। फिर दिग्विजय सिंह गुट के लोगों ने आदिवासी नाम को आगे बढ़ाया। कुल मिलाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया की टांग खिंचाई शुरू हो गई थी। इस पूरे घटनाक्रम में भी हाईकमान पहले की तरह चुप रहा। सिंधिया को कोई सपोर्ट नहीं दिया गया। 

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