तबला के बारे में तो हम सब जानते ही हैं। संगीत में एक महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है। तबला के बिना संगीत की कोई भी महफिल अधूरी है। तबला इतना अधिक उपयोगी है कि उसके बिना गायक अधूरा सा लगता है लेकिन गायक के बिना तबला हजारों दिलों को जीत सकता है। क्या आप जानते हैं तबला एक अकेला ऐसा वाद्ययंत्र है जिसे वह उसे भी बजाए जा सकता है। फिलहाल सवाल यह है कि तबले के बीच में जो काले रंग का पदार्थ होता है उसका संगीत से कोई रिश्ता है या वह खाली डिजाइन होता है।
तबले के ब्लैक स्पॉट को स्याही कहते हैं। लेकिन यह लिखने के लिए कलम में डाली जाने वाली स्याही नहीं होती। यह चावल या फिर गेहूं के माण से बनाई जाती है। माण में और भी कई चीजें मिलाई जाती है। इसके बाद तैयार होता है उसे तबले पर रख दिया जाता हैमाण सूखने के बाद वह कड़क हो जाता है। कुछ वादक, डुग्गी पर सियाही के बजाय, गूँधे गए आटे को चिपका कर सुखा लेते हैं, हालाँकि यह प्रक्रिया हर बार करनी पड़ती है और तबला वादन के बाद इसे खुरच कर हटा दिया जाता है। पंजाब में यह अभी भी प्रचलन में है।
इस पदार्थ के कारण ही तबले की आवाज वैसी सुनाई देती है जैसे कि आपको आदत है। यह सदियों पुरानी परंपरा है जिसे आज तक कभी बदला नहीं जा सका। इस काले पदार्थ को तबले की जान कहते हैं। या किसी भी तबले के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि मनुष्य के लिए प्राण। कुल मिलाकर यह डिजाइन नहीं होता। इसका संगीत से गहरा रिश्ता है और यह तब लिखित जान होता है।
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