जबलपुर। हाई कोर्ट ने वरिष्ठ वकील नामित करने वकालत से सालाना 10 लाख रुपए आय का नियम अनिवार्य क्यों किया गया? चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने यह सवाल हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल व मप्र स्टेट बार कौंसिल को नोटिस जारी करने के निर्देश देकर किया है। साथ ही अनावेदकों से सवाल का जवाब 4 सप्ताह में पेश करने कहा है।
अधिवक्ता पीसी पालीवाल ने याचिका दायर करके कहा कि सीनियर एडवोकेट (वरिष्ठ वकील) नामित करने के लिए हाई कोर्ट ने नियम बनाया है, जिसमें उसको वकालत के पेशे से 10 लाख की सालाना आय होना अनिवार्य किया गया। हाई कोर्ट ने यह नियम बनाकर आय का बंधन लगाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2017 में सभी प्रदेशों की हाई कोर्ट के अलग-अलग नियमों को एकरूप बनाने के निर्देश दिए। तब हाई कोर्ट ने 2018 में इसके लिए नए नियम बनाए। इसमें वर्ष-2012 के नियमों की नकल करके 10 लाख की सालाना आय का बंधन नियम को वर्ष-2018 में भी बरकरार रखा गया।
अधिवक्ता अजय रायजादा ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार वरिष्ठ वकील नामित करने सिर्फ उसकी गुणवत्ता का फैसला करना होता है। इसलिए उसकी सालाना आय मापदंड नहीं हो सकती। हाई कोर्ट के पुराने नियमों में भी विधि के क्षेत्र में विशेष ज्ञान और 20 साल की प्रेक्टिस होने पर वरिष्ठ वकील नामित करने का प्रावधान रहा। यदि कोई वकील जनहित के मामले अधिक लेता है, तो निश्चित है कि उसकी आय टैक्स, कंपनी लॉ या क्रमिनल मामलों के वकील से कम ही होगी। इसलिए वरिष्ठ वकील नामित करने उसकी सालाना आय को ज्ञान, अनुभव का पैमाना नहीं बनाना चाहिए।
इसलिए आय को ज्ञान, अनुभव का पैमाना नहीं बनाना चाहिए। याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने अनावेदकों से 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है।