भोपाल। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने घर-घर बिजली के लिए सौभाग्य योजना शुरू की थी। मध्य प्रदेश में सौभाग्य योजना के क्रियान्वयन में इस कदर घोटाला किया गया कि ऊर्जा मंत्री तक के हाथ पांव फूल गए हैं। हर रोज नई-नई बातें सामने आ रही हैं। हालात यह है कि सरकार किसी स्वतंत्र एजेंसी से इस घोटाले की जांच कराने का मन बना रखी है।
मध्य प्रदेश सौभाग्य योजना घोटाला: सिर्फ 2 जिलों में 9 इंजीनियर फंसे
पत्रकार श्री धनंजय प्रताप सिंह की एक रिपोर्ट के अनुसार सौभाग्य योजना घोटाला के तहत मध्यप्रदेश के सिर्फ 2 जिले डिंडोरी और मंडला में 9 इंजीनियर इस घोटाले में संलिप्त पाए गए हैं। जांच का दायरा बढ़कर 12 किलो तक पहुंच गया है। माना जा रहा है कि या घोटाला मध्य प्रदेश के सभी 52 जिलों में हुआ है। फिलहाल 9 इंजीनियरों से ₹12 करोड़ की रिकवरी के नोटिस जारी किए गए हैं।
घोटाला: दीनदयाल योजना के ट्रांसफार्मर सौभाग्य योजना में लगा दिए
डिंडौरी और मंडला में दीनदयान योजना के पुराने ट्रांसफार्मर को निकालकर सौभाग्य योजना में लगा दिया गया। यानी एक ट्रांसफार्मर की दो बार खरीदी बता दी गई। डिंडौरी जिले की अमरपुर जनपद पंचायत के गांव में सौभाग्य योजना के तहत बिछाई गई लाइन इतनी घटिया थी कि पहली बारिश में ही धराशाई हो गई। ग्राम लखनपुर और उसके मजरे-टोले में सौभाग्य योजना के पोल और ट्रांसफार्मर बारिश के कारण गिर गए थे। जांच में पता चला कि पोल लगाने में कांक्रीट का इस्तेमाल ही नहीं किया गया था।
मध्य प्रदेश सौभाग्य योजना घोटाला: बिजली कंपनी के अफसरों ने जांच के नाम पर लीपापोती कर दी थी
मात्र दो जिले मंडला और डिंडौरी के दो अधीक्षण यंत्री सहित नौ इंजीनियरों को सौभाग्य योजना में विद्युतीकरण के काम में करोड़ों की गड़बड़ी करने का दोषी पाया गया है। जुलाई में ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह के निर्देश पर बिजली कंपनी के अफसरों ने जांच की थी और लीपापोती कर सभी दोषियों को बचा लिया था।
मध्य प्रदेश सौभाग्य योजना घोटाला: ऊर्जा मंत्री ने भौतिक सत्यापन कराया तब खुलासा हुआ
ऊर्जा मंत्री ने जांच रिपोर्ट को खारिज कर दोबारा 12 इंजीनियरों की टीम बनाकर गांव-गांव और जंगल-जंगल भेजकर भौतिक सत्यापन करवाया तो कहानी कुछ और ही निकली। जांच रिपोर्ट में पता चला कि जितने काम का दावा कर भुगतान किया गया, वह काम हुआ ही नहीं। कहां ट्रांसफार्मर लगाए गए, उसका ब्योरा भी नहीं मिला। घटिया सामग्री और दूसरी योजनाओं के ट्रांसफार्मर लगाकर करोड़ों के बिल निकाल लिए गए। इस गड़बड़ी के लिए सरकार ने मंडला के तत्कालीन अधीक्षण यंत्री टीके मिश्रा और अधीक्षण यंत्री डिंडौरी अशोक निकोसे को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है।
ना ऑनलाइन टेंडर निकाले, ना विज्ञापन जारी किया, ठेकेदारों को काम दे दिया
विद्युतीकरण योजना के तहत दो लाख रुपए तक के कार्य ई-टेंडर के माध्यम से कराए जाने का नियम है। इस नियम को शिथिल कर राज्य सरकार ने सौभाग्य योजना के पांच लाख रुपए तक के काम ऑफलाइन टेंडर से कराए जाने की अनुमति दी थी पर अधीक्षण यंत्री के स्तर पर 25 लाख रुपए तक के काम को पांच-पांच लाख रुपए में बांटकर चुनिंदा ठेकेदारों को उपकृत कर दिया गया। इसके विज्ञापन भी नहीं निकाले गए।
मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का बयान
सौभाग्य योजना में रोज नए-नए घोटाले सामने आ रहे हैं। वित्तीय गड़बड़ियां बहुत ज्यादा हैं। अब तक एक दर्जन जिलों में जांच चल रही है। विभाग का ज्यादा टाइम इसी जांच में जा रहा है। इसलिए विचार कर रहे हैं कि सौभाग्य की जांच किसी अलग एजेंसी से कराई जाए।
प्रियव्रत सिंह, ऊर्जा मंत्री, मध्य प्रदेश