गूगल में एक सर्च पर कितनी बिजली खर्च, कितनी कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित होती है | GK IN HINDI

भारत में इंटरनेट अब हर आदमी की जरूरत बन गया है। जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें सर्च इंजन का उपयोग करना पड़ता है। ज्यादातर लोग गूगल (सर्च इंजन) का उपयोग करते हैं। लोगों के पास अनलिमिटेड डाटा होता है। ज्यादातर लोग सिर्फ इतना आकलन करते हैं कि एक गूगल सर्च करने में कितना डाटा खर्च होता है लेकिन क्या आप जानते हैं आपकी स्क्रीन पर एक सर्च रिजल्ट प्रस्तुत के लिए गूगल कितनी बिजली खर्च करता है। इस पूरी प्रक्रिया में कितनी कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित हो जाती है। आइए आपको इस मजेदार सवाल का जवाब बताएं:

एक गूगल सर्च पर 11 वॉट बिजली खर्च होती है

जर्मनी की इंटरनेट कंपनी ‘स्ट्राटो’ ने अपने एक बयान में बताया था कि गूगल के डाटा सेंटरों, सर्वरों और खोज अनुरोधों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि एक गूगल सर्च पर खर्च होने वाली बिजली से 11 वॉट का एक सीएफएल बल्ब एक घंटे तक जल सकता है। यानी एक गूगल सर्च रिजल्ट 11 वाट बिजली खर्च करता है।

एक गूगल सर्च 7.5 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित करता है

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि एक कप चाय उबालने में जितनी कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, लगभग उतनी ही गूगल पर दो बार खोज करने से हो जाती है। इस तथ्य को कई वैज्ञानिकों ने सही ठहराया है। एक कप चाय उबालने से लगभग 15 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, तो सोचा जा सकता है कि एक बार नेट सर्फिंग से कितनी कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है? 

गूगल सर्च से एक सेकेंड में 500 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन

दुनिया का सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन इंटरनेट पर 40 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। गूगल सर्च से एक सेकेंड में 500 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इस मामले में उल्लेखनीय है कि गूगल ने इस बात को अस्वीकार नहीं किया कि डाटा सेंटर कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में इजाफा कर रहे हैं। गूगल को स्वीकार करना पड़ा कि भले ही उसकी खोज से उतनी ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड पैदा नहीं होती, मगर होती जरूर है और दुनिया का तापमान बढ़ाने में उसका कुछ न कुछ योगदान भी होता है। इंटरनेट अपनेआप में एक क्लाउड है, लेकिन यह वास्तव में डाटा सेंटर के लाखों सर्वर पर निर्भर रहता है।

गूगल सर्च पर रिजल्ट तेजी से आते हैं इसलिए बिजली भी ज्यादा खर्च होती है

दुनियाभर में गूगल बहुत बड़ा डाटा सेंटर ऑपरेट करता है, जिसके लिए बहुत ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ये सभी सर्वर राउटर, स्विचेस और समुद्र के भीतर केबल या अंडरसी केबल यानी समुद्र के भीतर केबल के जरिये जुड़े होते हैं और इन सभी को चालू रखने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। गूगल के सर्च इंजन पर परिणाम बहुत तेजी से सामने आते हैं, जिसका अर्थ है कि काफी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा का दोहन होता है। दुनिया भर में आज भी अधिकांश बिजली उन स्नोतों से आ रही है जो काफी मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कर रहे हैं। जब ऊर्जा की अधिक मांग होती है, तो कोयला और जीवाश्म ईंधन से संचालित ये ऊर्जा संयंत्र और भी अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं।

गूगल पर हर रोज 3.5 अरब सर्च, 26050 क्विंटल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन

गूगल पर रोजाना साढ़े तीन अरब खोज प्रविष्टियां आती हैं यानी करीब एक दिन में लोग साढ़े तीन अरब बार कुछ न कुछ सर्च करते हैं। गूगल की ओर से भी यह बताया गया है कि एक उपयोगकर्ता को एक महीने गूगल की सेवा देने में उतना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जितना कि एक कार 1.6 किलोमीटर चलने में करती है। वर्ष 2018 में आइएएम की एक कॉन्फ्रेंस के दौरान मोल नामक एक शोधकर्ता ने कहा था, ‘गूगल पर हर सेकेंड खोज परिणाम लोगों तक पहुंचाने के लिए 23 पेड़ों को अपनी कार्बन सोखने की क्षमता का इस्तेमाल करना पड़ता है।
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