कैसे पता करें साबुन में जानवरों की चर्बी है या नहीं | GK IN HINDI

अभिषेक सिंह। क्या आप जानत हैं, ज्यादातर साबुनों में जानवरों की चर्बी होती है। भारत के करोड़ों शाकाहारी लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती। लाखों शाकाहारी लोग ऐसे हैं जो मांस पकाने के लिए उपयोग किए गए चूल्हे तक को वर्जित मानते हैं परंतु वही लोग जानकारी के अभाव में जानवरों की चर्बी वाले साबुन से नहाते हैं और फिर खुद को स्वच्छ एवं भगवान की पूजा के लिए पवित्र मान लेते हैं। 

नहाने वाले साबुन पर TOILET SOAP लिखा नहीं होता

भारतीय बाजार में बिकने वाले ज्यादातर साबुन TOILET SOAP होते हैं। साबुन पर TOILET SOAP लिखा हुआ भी रहता है। इसका तात्पर्य होता है कि यह केवल गंदे हाथ धोने के लिए हैं, ​ऐसे साबुनों का उपयोग नहाने के लिए नहीं किया जाए। इस तरह के साबुन त्वचा के लिए तो हानिकारक होते ही हैं, इनमें जानवरों की चर्बी भी होती है। 

साबुन कुल कितने प्रकार के होते हैं, टॉयलेट सोप और बाथिंग सोप में क्या अंतर है

हमारे दैनिक उपयोग में आने वाला एक महत्वपूर्ण उत्पाद है साबुन। साबुन रासायनिक और आयुर्वेदिक/हर्बल दो प्रकार के होते हैं। सामान्यत: हम टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापनों को देख कर दैनिक उपयोग में आने वाले साबुन का चुनाव करते हैं। लेकिन, इनमें से ज्यादातर टॉयलेट सोप यानी कि शौच करने के बाद हाथ धोने वाले साबुन शामिल होते हैं। भारत में बहुत कम साबुन हैं जिन्हें बाथिंग सोप का दर्जा मिला हुआ है।

साबुन में क्या क्या रसायन मिलाए जाते हैं, साबुन कैसे बनाया जाता है

साबुन बनाने की प्रक्रिया में 3 महत्त्वपूर्ण घटक वसीय अम्ल ,कास्टिक सोडा और पानी होते हैं। वसीय अम्ल (FATTY ACID), जिसका मुख्य स्रोत नारियल, जैतून या ताड़ के पेड़ होते हैं, इसे जानवरों की चर्बी से भी निकाला जाता है। इसे टालो (TALLOW) कहते हैं जो की बूचड़खाने से मिलता है। टालो से निकले गए वसीय अम्ल अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं। इस वसीय अम्ल (FATTY ACID ) से सोडियम लौरेल सल्फेट (SLS) का निर्माण होता है जो झाग बनाने में प्रयुक्त होता है।

कैसे पता करें साबुन में जानवरों की चर्बी है या नहीं

यदि आप शाकाहारी हैं और आपके साबुन में जानवरों की चर्बी के बारे में पता करना है तो साबुन के रैपर पर TALLOW शब्द देख लें। टैलो लिखा है तो वह साबुन आपके लिए नहीं है। आपको फिर बिना टैलो वाले साबुन का उपयोग करना चाहिए।

अच्छे साबुन का चुनाव कैसे करें

साबुन के वर्गीकरण से पहले हम एक महत्त्वपूर्ण शब्द TFM के बारे में जान लें जो सामान्यत: हर साबुन के पैकेट के पीछे लिखा मिल जायेगा। "TFM " का मतलब TOTAL FATTY MATERIAL होता है जो कि साबुन का वर्गीकरण और गुणवत्ता का निर्धारण करता है। साबुन में जितना ज्यादा TFM का प्रतिशत होगा साबुन की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी होगी। इस आधार पर हम साबुन को 3 भागों में बांट सकते हैं, जिनमें कार्बोलिक साबुन, टॉयलेट साबुन और नहाने का साबुन यानी बाथिंग बार होता है।

CARBOLIC SOAP क्या होता है, इसमें कौन से रसायन होते हैं

इस साबुन को GRADE 3 SOAP की लिस्ट में रखा जाता है। इसमें TFM का प्रतिशत 50% से 60% तक होता है और यह साबुन सबसे घटिया दर्जे का साबुन होता है। इसमें फिनायल की कुछ मात्रा होती है जिसका उपयोग सामान्यत: फर्श या जानवरों के शरीर में लगे कीड़े मारने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यूरोपीय देशों में इसे एनिमल सोप या जानवरों के नहाने का साबुन भी कहते हैं। साबुन के पीछे TFM का प्रतिशत देखकर आप खुद समझ जाएंगे कि आपका साबुन किस ग्रेड का है।

TOILET SOAP क्या होता है, इसमें कौन से रसायन होते हैं

इस साबुन को GRADE 2 SOAP की लिस्ट में रखा जाता है। गुणवत्ता के आधार पर दूसरे दर्जे का साबुन होता है। भारत में इस प्रकार के साबुन का उपयोग ज्यादातर लोग करते हैं। सामान्यतया इसका उपयोग शौच इत्यादि के बाद हाथ धोने के लिए होता है। इसमें 65% से 75% TFM होता है। कार्बोलिक साबुन की अपेक्षा इसके इस्तेमाल से त्वचा को कम नुकसान होता है। भारत में इस श्रेणी के कई उत्पाद हैं। आप खुद भी साबुन खरीदने से पहले रैपर को देख कर पढ़ सकते हैं।

BATHING SOAP क्या होता है, इसमें कौन से रसायन होते हैं

इस साबुन को GRADE 1 SOAP की लिस्ट में रखा जाता है। यह गुणवत्ता के आधार पर सर्वोत्तम साबुन है तथा इसका उपयोग स्नान के लिए किया जाता है। इस साबुन में TFM की मात्रा 76% से अधिक होती है। इस साबुन के रसायनों से त्वचा पर होने वाली हानि न्यूनतम होती है। इस लिस्ट में डव साबुन, पियर्स और निरमा के कुछ प्रोडक्ट को रखा जा सकता है।

साबुन में खतरनाक रसायन कौन सा होता है, उसका क्या असर होता है

साबुन में झाग के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायन सोडियम लारेल सल्फेट से त्वचा की कोशिकाएं शुष्क हो जाती हैं और कोशिकाओं के मृत होने की संभावना रहती है। यह आंखों के लए अत्यंत हानिकारक है। नहाते समय साबुन यदि आँखों में चला जाये तो इसी रसायन के असर से हमे तीव्र जलन का अनुभव होता है, त्वचा पर खुजली और दाद की संभावना होती है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि कोई भी रासायनिक साबुन त्वचा के लिए लाभदायक नहीं है। लेकिन, साबुन का उपयोग करना बंद नहीं किया जा सकता है ऐसे में हमें उसी साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें TFM की मात्रा 76% से ज्यादा हो।
लेखक श्री अभिषक सिंह दिल्ली के रहने वाले हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है। 
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