मध्य प्रदेश के 25 जिलों के जंगल वन माफिया के कब्जे में है, तेजी से कट रहे हैं: भारत सरकार की रिपोर्ट

भोपाल। मध्य प्रदेश के 25 जिलों में जंगल का सफाया हो रहा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एंटी माफिया मूवमेंट का ऐलान किया है परंतु माफिया मुक्त मध्य प्रदेश का पूरा अभियान केवल अतिक्रमण विरोधी अभियान बनकर रह गया है। वन माफिया, वन विभाग के अधिकारियों से पार्टनरशिप करके जंगलों का सफाया कर रहे हैं। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं। यह कोई आरोप नहीं बल्कि भारत सरकार की रिपोर्ट है।

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने 2019 की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदेश के 50 जिलों में से 25 में वनक्षेत्र दो साल में कम हुआ। बताने की जरूरत नहीं कि इन जिलों में वन माफिया और वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के कारण अंधाधुंध पेड़ों की कटाई की गई है। वहीं मध्य प्रदेश के 25 जिले ऐसे भी हैं जहां वन क्षेत्र बढ़ा है। कहने की जरूरत नहीं कि यहां का जंगल वन विभाग के अच्छे अधिकारियों के हाथ में रहा। 

वन मंत्री के जिले में भी जंगल साफ, सीहोर का पूरा जंगल माफिया के कब्जे में

सबसे ज्यादा जंगल सीहोर जिले में कटे हैं। जंगल कटने की सूची में वनमंत्री उमंग सिंघार का गृह जिला धार भी शामिल है। वहीं पन्ना में सबसे ज्यादा वनक्षेत्र बढ़ा है। 

मध्यप्रदेश में वन क्षेत्र का संतुलन बिगड़ गया है, इसलिए मौसम की मार पड़ रही है

उज्जैन ऐसा जिला है जहां कुल क्षेत्रफल का एक प्रतिशत भी जंगल नहीं है। यहां जंगल सिर्फ 0.59 प्रतिशत जमीन पर है। 10 जिलों में वनक्षेत्र 10 प्रतिशत से कम है और 17 में 20 प्रतिशत से कम। सिर्फ 2 जिलों में 50 प्रतिशत से ज्यादा। ये दो जिले बालाघाट और श्योपुर हैं। 10 प्रतिशत से कम वन वाले जिलों में झाबुआ भी शामिल है। 35 प्रतिशत से ज्यादा जंगल वाले जिले मात्र 10 हैं। 

सरकार की रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय

इसरो के सेटेलाइट से मिले आंकड़ों से ये रिपोर्ट जारी की गई है। इसके पहले साल 2017 में रिपोर्ट आई थी। दो सालों में प्रदेश में 68.49 वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़े हैं। प्रदेश में 25.14 प्रतिशत जंगल है। 2017 में ये 25.11 प्रतिशत थे। 17 जिलों में वेरी डेंस फॉरेस्ट (अधिक घनत्व वाले जंगल) नहीं है। आलीराजपुर और झाबुआ भी इस श्रेणी में रखे गए हैं।

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