"अग्रिम जमानत" यह शब्द तो हर किसी ने सुनी ही होंगे। जब भी पुलिस कोई गंभीर अपराध दर्ज करती है तो आरोपी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करता है। अग्रिम जमानत मिल जाने से पुलिस आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाती और वह स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन यापन करता है। प्रश्न यह है कि जब पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है तो फिर कोर्ट से अग्रिम जमानत क्यों दी जाती है। उसकी गिरफ्तारी पर रोक क्यों लगाई जाती है। जमानत और अग्रिम जमानत में क्या अंतर है। आइए जानते हैं ऐसे ही कई सारे सवालों के जवाब:
जमानत और अग्रिम जमानत में क्या अंतर है | What is difference between bail and anticipatory bail?
पुलिस दो प्रकार के मामले दर्ज करती है। एक जमानती और दूसरा गैर जमानती। जमानती प्रकरण यानी ऐसा मामला जिसकी प्रकृति गंभीर नहीं है। ऐसे मामलों में कानून ने पुलिस को यह अधिकार दिया है कि वह प्रकरण दर्ज करने के बाद आरोपी को जमानत स्वीकृत कर दे। हालांकि यह पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि जब मामला कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तुत हो तो पुलिस आरोपी को कोर्ट में प्रस्तुत करे। गंभीर प्रकृति के अपराध के लिए गैर जमानती प्रकरण दर्ज किए जाते हैं। ऐसे मामलों में पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर लेती है और उसके बाद मामले की जांच की जाती है। जांच पूरी हो जाने के बाद मामला न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है। ऐसे ही मामलों में यदि आरोपी को दृढ़ता पूर्वक यह विश्वास है कि पुलिस ने उसके खिलाफ गलत मामला दर्ज कर लिया है और वह इसे प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त सबूत रखता है तो न्यायालय सुनवाई के बाद आरोपी को अग्रिम जमानत दे देती है। सरल शब्दों में कहें तो अग्रिम जमानत यानी आरोपी की गिरफ्तारी पर स्थगन आदेश। दर्ज मामले में पुलिस पहले की तरह की जांच करती है और मामला न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है अंतर सिर्फ इतना होता है कि पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश नहीं करती बल्कि आरोपी स्वतंत्रता पूर्वक जीवन यापन करते हुए स्वयं निर्धारित तारीख पर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हो जाता है।
अग्रिम जमानत याचिका किस कोर्ट में प्रस्तुत करें | Which court should submit the anticipatory bail petition
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर बहुत कम लोगों को ज्ञात होता है। ज्यादातर वकील भी कहते हैं की एक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए या नहीं पहले छोटी कोर्ट में आवेदन प्रस्तुत करें यदि खारिज हो जाए तो उसके ऊपर वाली कोर्ट में अपील करें परंतु अग्रिम जमानत के मामले में इस प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य नहीं है। आरोपी अपनी याचिका जिला कोर्ट या हाई कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है। और जहां चाहे अग्रिम जमानत याचिका प्रस्तुत कर सकता है। हाई कोर्ट में इस आधार पर कोई भी अग्रिम जमानत याचिका खारिज नहीं की जाती क्योंकि वह इससे पहले जिला न्यायालय में प्रस्तुत नहीं की गई थी।
सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय को समान अधिकार | Equal Rights to Sessions Court and High Court
बता दें कि CRPC की धारा 438 में उच्च न्यायालय एवं सत्र न्यायालय को समान अधिकार दिए गए हैं। दोनों न्यायालय अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर सकते हैं और यदि न्यायधीश को लगता है कि पुलिस ने गलत मामला दर्ज कर लिया है तो वह आरोपी को अग्रिम जमानत का लाभ देने के लिए स्वतंत्र है।
अग्रिम जमानत का प्रावधान क्यों किया गया | Why was there provision for anticipatory bail
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। पुलिस मामला दर्ज करने से पहले फरियादी से कई तरह के सवाल करती है। अपने स्तर पर प्रारंभिक जांच करती है। जब इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी को यह विश्वास हो जाता है कि अपराध दर्ज किए जाने योग्य है तभी उसे प्रथम सूचना प्रतिवेदन (FIR) में दर्ज किया जाता है। प्रश्न महत्वपूर्ण है कि जब पुलिस प्रारंभिक जांच कर लेती है और उसके बाद मामला दर्ज किया जाता है तो फिर आरोपी को अग्रिम जमानत का लाभ क्यों दिया जाता है। अग्रिम जमानत का प्रावधान क्यों किया गया। एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने बताया कि अग्रिम जमानत का प्रावधान संविधान में प्रदत्त वैयक्तिक स्वतंत्रता एवं अनावश्यक उत्पीड़न की गारंटी के तहत लागू किया गया है। CRPC की धारा 438 में अग्रिम जमानत का प्रावधान है।
अग्रिम जमानत कब तक प्रभावी रहती है | How long does advance bail remain
आरोपी को न्यायालय की ओर से दी गई अग्रिम जमानत पुलिस की जांच पूरी होने तक प्रभावी रहती है। जैसे ही पुलिस की जांच पूरी होती है और पुलिस कोर्ट में चालान पेश करती है अग्रिम जमानत अपने आप निष्प्रभावी हो जाती है। आरोपी को निर्धारित प्रक्रिया के तहत जमानत के लिए सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत होना पड़ता है। न्यायालय एक बार फिर निर्धारित करता है कि अपराध की प्रकृति क्या है, पुलिस ने अपनी विस्तृत जांच में क्या पाया और क्या हाल ओपी को जमानत दी जानी चाहिए। यहां पर न्यायालय आरोपी को जेल भी भेज सकता है।
क्या अग्रिम जमानत निरस्त भी हो सकती है | Can anticipatory bail be Cancelled?
अग्रिम जमानत यानी गिरफ्तारी पर रोक। यह सक्षम न्यायालय द्वारा प्रदान की जाती है और न्यायालय को अधिकार होता है कि वह पुलिस की जांच पूरी होने से पहले यदि आवश्यकता महसूस करें तो अग्रिम जमानत को निरस्त कर सकती है। सामान्यतः पुलिस या दूसरे पक्ष की ओर से आपत्ति आने पर ऐसा होता है।
क्या धारा 376 में अग्रिम जमानत मिल सकती है | Can one get anticipatory bail in Section 376
हत्या एवं बलात्कार को भारतीय दंड संहिता के तहत जघन्य अपराध माना गया है। जघन्य अपराधों में सामान्यतः अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जाता परंतु जैसा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने बताया कि अग्रिम जमानत का प्रावधान संविधान में प्रदत्त वैयक्तिक स्वतंत्रता एवं अनावश्यक उत्पीड़न की गारंटी के तहत लागू किया गया है। यदि आरोपी न्यायालय को यह विश्वास दिलाने में सफल हो जाता है कि पुलिस ने उसके खिलाफ गलत मामला दर्ज कर लिया है तो आरोपी को रेप के मामले में भी अग्रिम जमानत मिल सकती है।
अग्रिम जमानत की प्रक्रिया क्या है, अग्रिम जमानत कैसे मिलती है | What is the procedure for anticipatory bail, How to get advance bail
जैसा कि बताया जा चुका है अग्रिम जमानत की कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं होती। क्योंकि पुलिस प्रकरण दर्ज कर चुकी होती है और आरोपी को गिरफ्तार किए जाने का खतरा होता है तब आरोपी किसी भी सक्षम न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका प्रस्तुत कर सकता है। चाहे संबंधित कोर्ट में पुलिस की जांच के बाद उसका प्रकरण सुनवाई के लिए प्रस्तुत होने वाला हो या ना। सत्र न्यायालय से लेकर हाई कोर्ट तक कहीं भी अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की जा सकती है। अग्रिम जमानत मिलने का सिर्फ एक ही आधार है और वह यह कि प्रकरण दर्ज किए जाने में कोई चूक हुई हो। या फिर फरियादी ने किसी साजिश के तहत पूरा मामला ही झूठा दर्ज करा दिया हो।