MP: कर्मचारी/अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांचों में मुख्यमंत्री कार्यालय का दखल समाप्त | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। मध्य प्रदेश शासन के लिए काम कर रहे ऐसे शासकीय कर्मचारी एवं अधिकारियों ((MP government employee)) के लिए गुड न्यूज़ है उज्जैन के खिलाफ विभागीय (Departmental enquiry) जांच चल रही है और वह जांच में निर्दोष पाए गए हैं। अब उनकी विभागीय जांच की फाइल में खात्मा अप्रूव करने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय (Chief Minister office (CMO)) की जरूरत नहीं होगी। विभाग के प्रमुख सचिव अपने स्तर पर विभागीय जांच की फाइल क्लोज कर सकते हैं। 

शिवराज सिंह ने शुरू की थी सीएम समन्वय की व्यवस्था

बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह परंपरा 2005 में शुरू की थी। विभागीय जांच की हर फाइल को (जिसमें कर्मचारी/अधिकारी निर्दोष पाया गया है) फाइनल क्लोजिंग के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय जाना पड़ता था। सीएम समन्वय से मंजूरी के बाद ही कर्मचारी के माथे से कलंक हटता था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस व्यवस्था के कारण कर्मचारियों के खिलाफ होने वाली विभागीय कार्यवाही की फाइल लंबे समय तक अटकी रहती थी। 

कमलनाथ ने बंद कर दी शिवराज सिंह की प्रथा

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विभागीय समीक्षा के दौरान यह पाया कि विभागीय जांचों को समाप्त करने के लिए वेतनमान 12000-16500 या इससे ऊपर के अधिकारी-कर्मचारी की फाइल को सीएम-समन्वय भेजना अनिवार्य है। यह एक प्रकार से निर्दोष कर्मचारियों को तंग करने की प्रथा थी। मजेदार बात यह है कि जो कर्मचारी या अधिकारी विभागीय जांच में दोषी पाया जाता था उसे दंड देने का फैसला प्रमुख सचिव स्तर पर ही हो जाता था। मुख्यमंत्री का कार्यालय इस कार्यवाही में दखल नहीं देता था। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस प्रथा को बंद करने का फैसला किया है। अब विभाग का प्रमुख सचिव जांच में निर्दोष पाए गए कर्मचारियों के मामले अपने स्तर पर क्लोज कर सकते हैं। इससे कर्मचारियों को राहत मिलेगी।

विभागीय जांच के लंबित मामले तुरंत निपटाने के आदेश 

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विभागीय जांच के नाम पर लंबित मामलों को फटाफट निपटाने के आदेश दिए हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि जिन मामलों में कर्मचारी सस्पेंड चल रहे हैं उन्हें प्राथमिकता से निपटाया जाए। जांच में दोषी पाए जाने पर दंडित किया जाए, निर्दोष पाए जाने पर बहाल करके शासन की सेवा में लिया जाए। जो मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं उन्हें भी प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाए। कुल मिलाकर विभागीय जांच की फाइल पेंडिंग नहीं होनी चाहिए।

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