माफ़ कीजिये, माई लार्ड 3 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। इस समय देश की अदालतों में 31648934 मुकदमे लंबित हैं और इनमें दस साल ज्यादा पुराने मुकदमों की संख्या 65 लाख से अधिक है। अब सरकार चाहती है कि उच्च न्यायालयों में दस साल से ज्यादा समय से लंबित मुकदमों का तेजी से निपटारा किया जाये। सवाल यह है कि ऐसा कैसे हो? एक तरफ सरकार ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से इनकार कर दिया है, नये मुकदमे रोज दायर हो रहे हैं। 

उच्च न्यायालयों में 8 लाख से अधिक मुकदमे दस साल से भी ज्यादा समय से लंबित हैं जबकि देश की सारी अदालतों में इस तरह के 65 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं। आखिर उच्च न्यायालयों में दस साल से ज्यादा लंबित मुकदमों का निपटारा तेजी से कैसे हो? राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार इस समय देश की अदालतों में पांच साल से ज्यादा समय से लंबित मुकदमों की संख्या 6596318 है। इनमें 30 साल से ज्यादा पुराने मुकदमों की संख्या 72243 है जबकि 20 से 30 साल पुराने मुकदमों की संख्या 365998 और 10 से 20 साल पुराने मुकदमों की संख्या 1941487 है। इन आंकड़ों के अनुसार अकेले पांच से दस साल पुराने मुकदमों की संख्या 4216990 है। 

अदालतों में महिलाओं द्वारा दाखिल मामलों की संख्या भी 30 लाख से ज्यादा है जबकि वरिष्ठ नागरिकों द्वारा दायर मुकदमों की संख्या भी 1963000 पार कर चुकी है। यह सही है कि मुकदमों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 35 कर दी है और वहां इस समय 59800 से अधिक मुकदमे लंबित हैं जबकि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या इस समय 1079 है और इनमें से 422 पद अभी भी रिक्त हैं। उच्च न्यायालयों में अभी भी 40 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं।

लंबित मुकदमों, विशेषकर दस साल से ज्यादा पुराने मामलों के संबंध में बेहतर होगा कि यदि उच्च न्यायालय भी अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी ढांचा विवाद की भांति सुनवाई के लिये समय सीमा निर्धारित कर सख्ती से पालन करे। आवश्यक होने पर ही सुनवाई स्थगित करे जिससे इन मुकदमों का तेजी से निपटारा हो सकता है। इसके अलावा, मुकदमों की सुनवाई पूरी होने के बाद इनके फैसला सुनाने के बारे में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन भी लंबित मुकदमों की संख्या कम करने में मददगार हो सकता है।उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में मुकदमों के बढ़ते बोझ से निपटने के लिये जरूरी है कि दोनों ही स्तरों पर न्यायालय कक्षों और अदालतों की संख्या बढ़ाई जाये। इसके लिए जरूरी है केन्द्र और राज्य सरकारें न्यायिक सुधारों के साथ ही लंबित मुकदमों के तेजी से निपटारे के प्रति अधिक गंभीर हों।

यह भी सत्य तथ्य है कि उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद उच्च न्यायालयों की तरह ही अधीनस्थ अदालतों में भी बड़ी संख्या में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के पद रिक्त हैं। अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के 23566 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 25 प्रतिशत पद अर्थात 224 पद अभी भी रिक्त हैं। न्यायपालिका में इतनी बड़ी संख्या में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के पद रिक्त होने और तीन करोड़ मुकदमे लंबित होने के तथ्य के मद्देनजर शीघ्र न्याय की आस की सहज कल्पना दूर की कौड़ी है। जरूरी है कि उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या के साथ ही अदालत कक्षों की संख्या में वृद्धि की जाये, साथ ही कोई भी नया कानून बनाते समय सरकार इस तथ्य पर भी ध्यान दे कि इससे अदालतों पर इसका कितना बोझ पड़ेगा।

सरकार का दावा है कि उसने अदालतों की ढांचागत सुविधाओं में सुधार के लिये अनेक कदम उठाये हैं लेकिन स्पष्ट नहीं है कि मुकदमों के अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करने की दिशा में क्या कदम उठाये जा रहे हैं? मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिये अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार होना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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