भारत में कर्मचारियों को अब 9 घंटे प्रतिदिन काम करना होगा

नई दिल्ली। भारत सरकार ने वेतन संहिता के मसौदे में नौ घंटे का सामान्य कार्य दिवस करने का प्रस्ताव किया है। हालांकि, मसौदे में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी की दरें नहीं निर्धारित की गई हैं। इसमें कहा गया है कि एक विशेषज्ञ समिति भविष्य में न्यूनतम मजदूरी पर सरकार के सामने अपनी राय रखेगी। यह मसौदा सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध है। 

आम जनता इस पर विचार जाहिर कर सकती है। दिसंबर में मसौदे को अंतिम रूप देने की योजना है। मसौदे में कहा गया है, ‘एक सामान्य कार्य दिवस नौ घंटे का होगा। हालांकि, मासिक वेतन के निर्धारण के समय 26 दिनों के *लिए आठ घंटे के कामकाज को मानक माना जाएगा।'

मसौदे के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम वेतन तय करने के लिए देश को तीन भौगोलिक श्रेणियों में बांटा जाएगा। पहला, महानगर जिसकी आबादी *40 लाख या उससे अधिक हो। दूसरा, गैर-महानगर जिसमें दस से 40 *लाख लोग रह रहे हों। तीसरा, *ग्रामीण इलाके।

आवास भत्ता दस फीसदी होगा

वेतन संहिता के मसौदे में कहा गया है कि आवास भत्ता न्यूनतम मजदूरी का दस फीसदी होगा। कर्मचारी किस श्रेणी के क्षेत्र में रहता है, उसके आधार पर यह कम-ज्यादा नहीं होगा। पेट्रोल-डीजल, बिजली व अन्य वस्तुओं पर खर्च की राशि न्यूनतम मजदूरी का 20 प्रतिशत हिस्सा रखी गई है।

हर पांच साल में ‘फ्लोर वेज' की समीक्षा

वेतन संहिता के मसौदे में ‘फ्लोर वेज' की हर पांच साल या उससे कम समय में समीक्षा करने का प्रस्ताव किया गया है। ‘फ्लोर वेज' उस सीमा को कहते हैं, जिससे कम वेतन कोई भी नियोक्ता अपने किसी भी कर्मचारी को नहीं दे सकता।

375 रुपये प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी की हुई थी सिफारिश

श्रम मंत्रालय के आंतरिक पैनल ने जनवरी में पेश रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर 375 रुपये प्रति कार्य दिवस के हिसाब से न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने की सिफारिश की थी। उसने शहरों में बसे कर्मचारियों को 1430 रुपये आवास भत्ता देने को भी कहा था।

2700 कैलोरी की खपत बनेगी आधार

मसौदे में यह भी साफ किया गया है कि न्यूनतम मजदूरी की गणना करते समय एक मानक परिवार के लिए 2700 कैलोरी प्रतिदिन और 66 मीटर कपड़ा सालाना खपत को आधार बनाया जाएगा। इन मानकों पर 1957 से अमल हो रहा है, जब पहली बार न्यूनतम मजदूरी की गणना की गई थी।

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