भोपाल। आरटीआई कमिश्नर राहुल सिंह ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए लोकायुक्त संगठन को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत ला खड़ा किया है। बता दें कि इससे पहले भी राज्य सूचना आयोग ने लोकायुक्त सहित पांच संस्थाओं को आरटीआई के दायरे में लाने का प्रयास किया था परंतु कमजोर प्रयासों के कारण सफलता नहीं मिल पाई थी।
25 अगस्त 2011 का गजट नोटिफिकेशन नकारा
मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने ताजा आदेश (दिनांक 24 सितंबर 2019) में भ्रष्टाचार और मानव अधिकार के अतिक्रमण से संबंधित जानकारी को सूचना के अधिकार में वर्जित करने के संबंध में राज्य सरकार के 25 अगस्त 2011 के गजट नोटिफिकेशन को सिरे से नकार दिया है। इसमें लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना तथा राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मुक्त कर दिया गया था।
इससे पहले भी तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त पद्मपाणि तिवारी के 23 अगस्त 2007 के आदेश पर राज्य शासन को लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू सहित पांच संगठन को आरटीआई से बाहर रखने का गजट नोटिफिकेशन निरस्त करना पड़ा था लेकिन बाद में तत्कालीन लोकायुक्त के दवाव में राज्य शासन ने 25 अगस्त को केवल संस्थान लोकायुक्त तथा ईओडब्ल्यू को पुनः इससे छूट दे दी थी।
पिछली बार दोनों पक्षों में समझौता हो गया
मुख्य सूचना आयुक्त ने 23 अगस्त 2007 को इस गजट नोटिफिकेशन को आरटीआई की धारा 22 के खिलाफ बताया। जिसमें 20 विभाग व संगठन व क्षेत्रों को आरटीआई के दायरे से मुक्त रखा गया है। तत्कालीन लोकायुक्त प्रकाश प्रभाकर नावलेकर ने 17 नवंबर 2007 को तत्कालीन मुख्य राज्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी को अवमानना नोटिस दिया। तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त ने लोकायुक्त के अवमानना नोटिस के खिलाफ उच्च न्यायालय में रिट पिटीशन दाखिल की। लोकायुक्त ने भी सूचना आयोग के खिलाफ पिटीशन दाखिल कर दी थी। हाईकोर्ट में दोनों ही पिटीशन स्वीकार की गईं लेकिन चार अक्टूबर 2010 को लोकायुक्त व सूचना आयोग में समझौता हो गया।