मानसून रुको, हमारी कोई नीति नहीं है | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। इस बरस का मानसून इतिहास में गुजरी कई अस्वाभाविक घटनाओं में से एक के रूप में याद किया जाएगा। अब तो यह धारणा भी बदल गई है की मानसून का चार महीने का मौसम सितंबर के अंत में आधिकारिक रूप से समाप्त हो जाता है। देश के कुछ राज्यों में यह अब भी बरस रहा है। कब मानसून का सीजन समाप्त होगा, दूर-दूर तक इसका कोई निशान नजर नहीं आ रहा है। 

भारतीय मौसम विभाग का भी मानना है कि 10 अक्टूबर के पहले मॉनसून की वापसी होती नहीं दिखती। इससे पहले सन 1961 में मॉनसून ने 1 अक्टूबर को लौटना शुरू किया था। सही अर्थों में आधिकारिक तौर यह मॉनसून का सबसे लंबा ठहराव है। इसके अलावा इस वर्ष हुई कुल वर्षा भी 25 वर्षों में सर्वाधिक है। बस यहाँ एक बात गौर करने काबिल है, इतनी बारिश के जल का न तो हम सदुपयोग कर पाए और न ही ठीक से उसे निस्सारित ही कर पाये। बिहार, उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश के तो कई बड़े शहरों में पानी के ठीक से न निकल पाने से सडकों पर नाव भी चली । 

आंकड़ों के अनुसार सितंबर के अंत तक सर्वोच्च स्तर से 10 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की जा चुकी है। इसके अलावा सन 1931 के बाद से यह पहला मौका है जब मॉनसून कमजोर शुरुआत के बाद इस कदर वापसी करने में सफल रहा कि जून में बारिश की 33 प्रतिशत कमी दूर हो गई और वर्षा का स्तर सामान्य से बेहतर श्रेणी में चला गया। मोटे तौर पर ऐसा अगस्त-सितंबर में अत्यधिक तेज बौछारों की वजह से हुआ। सितंबर में हुई बारिश औसत से 52 प्रतिशत अधिक रही। बीते 102 वर्षों में यह सितंबर सबसे अधिक बारिश वाला महिना रहा।

वर्षा का यह रुझान मॉनसून के आगमन और वापसी, शुरुआती मौसम की बारिश और अतिरंजित मौसम की घटनाओं को लेकर सोच और विश्लेषण में बदलाव की मांग करता है। वर्षा को लेकर मौजूदा सामान्य पैमाने सन 1941 में तय किए गए थे और उन्हें अबभी लागू माना जा रहा है, जो ठीक नहीं है । मौसम विज्ञानी तर्क दे सकते हैं कि ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से हुआ है। मॉनसून अब पहले निर्धारित तिथियों के मुकाबले देरी से आता और जाता है। अब यह शुरुआती मौसम में धीमा रहता है। पिछले 11 में से सात वर्षों में जून यानी मॉनसून के पहले महीने में बारिश सामान्य से कम रही। तेज बारिश की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इतना ही नहीं पूर्वोत्तर भारत अब उच्च वर्षा वाला क्षेत्र नहीं रहा। सन 1990 और 2000 के दो दशकों की अच्छी वर्षा के बाद अब इस क्षेत्र में कम वर्षा हो रही है। जलवायु में यह बदलाव कृषि क्षेत्र पर व्यापक असर डालेगा। ऐसे में फसल चक्र और कृषि अर्थव्यवस्था की गतिविधियों में समायोजन की आवश्यकता है। जल प्रबंधन से जुड़े व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा। 

मॉनसून की यह वृद्धि अल नीनो (प्रशांत सागर के गर्म होने) के कमजोर होने से हुआ है। इसके साथ ही जुलाई में हिंद महासागर के तापमान में बदलाव आया है। दिलचस्प बात है कि मौसम विभाग ने अन्य वैश्विक व घरेलू एजेंसियों की तुलना में अल नीनो के कमजोर पडऩे का सटीक अनुमान लगाया। इन एजेंसियों को लग रहा था कि इसके चलते मॉनसून कमजोर बना रहेगा। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मौजूदा मॉनसून की विचित्रताओं के अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पडऩे की आशंका सरकार को नहीं है। 

सरकारी अनुमान है कि मौजूदा खरीफ सत्र में फसल उत्पाद सामान्य रहेगा। इसके रबी सत्र से बेहतर रहने की आशा है क्योंकि देर से बारिश होने से मिट्टी में नमी बरकरार रहेगी ।वैसे अभी देश के 113 बड़े जलाशयों का जल स्तर पिछले वर्ष से 15 प्रतिशत अधिक और पिछले 10 वर्ष के औसत से 21 प्रतिशत अधिक है। जबकि अधिकांश बांधों के गेट खोलकर ज्यादा पानी बहाना पड़ा। इसका उपयोग सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और जल संबंधी अन्य औद्योगिक गतिविधियों के लिए नहीं हो सका। ये सारी बातें आर्थिक गतिविधियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, एक नये सोच की जरूरत है, ऐसे समय में हमारी नीति क्या हो ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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