इंदौर। जिला उपभोक्ता फोरम ने जूता बनाने वाली कंपनी PUMA SPORTS INDIA PVT LTD पर आठ हजार रुपए का हर्जाना लगाया है। कंपनी ने घटिया क्वालिटी का जूता बेचा था। परिवादी ने इस विश्वास के साथ जूता खरीदा था कि वह इसे पहनकर पुलिस भर्ती परीक्षा के फिजिकल टेस्ट में अच्छा प्रदर्शन कर सकेगा, लेकिन घटिया क्वालिटी की वजह से जूता टेस्ट से पहले ही फट गया। फोरम ने कंपनी को जूते की पूरी कीमत मय ब्याज लौटाने को भी कहा है।
इंद्रपुरी कॉलोनी में रहने वाले आशीष पिता शिवराव पंवार ने अमेजान के जरिये 9 अगस्त 2017 को दो हजार रुपए में प्यूमा कंपनी का एक्सपेडाइट जूता खरीदा था। 14 दिसंबर 2017 को आशीष को पुलिस भर्ती परीक्षा के अंतर्गत होने वाले फिजिकल टेस्ट में शामिल होना था। प्यूमा कंपनी का जूता खरीदते वक्त उन्हें विश्वास था कि कंपनी उन्हें मजबूत जूता देगी, जिसे पहनकर वे टेस्ट में बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे। घटिया क्वालिटी की वजह से जूता दो महीने में ही फट गया और उसका सोल निकल गया।
इस पर परिवादी ने 7 अक्टूबर 2017 को जूता बनाने वाली कंपनी प्यूमा और ऑनलाइन जूता बेचने वाली कंपनी अमेजान को नोटिस दिया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इस पर परिवादी ने 15 नवंबर 2017 को एक बार फिर नोटिस जारी किया। इस बार भी उन्हें निराशा हाथ लगी। आखिर 2 जनवरी 2018 को परिवादी ने तीसरी बार नोटिस दिया। इस पर प्यूमा कंपनी ने उनसे कहा कि वह जूता बदलकर देने को तैयार है, लेकिन भुगतान प्यूमा अकाउंट में देंगे। परिवादी इस रकम से प्यूमा कंपनी का ही सामान खरीद सकेगा।
इस पर परिवादी ने जिला उपभोक्ता फोरम की शरण ली और परिवाद दायर कर दिया। प्यूमा कंपनी की तरफ से परिवाद में कोई उपस्थित नहीं हुआ, जबकि अमेजान की तरफ से बताया गया कि वह जूता निर्माता नहीं है। उसका काम सिर्फ प्रोडक्ट को उपभोक्ता तक पहुंचाने का होता है।
जिला उपभोक्ता फोरम अध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा ने पक्षों को सुनने के बाद बुधवार को परिवाद का निराकरण कर दिया। फोरम ने माना कि इस मामले में अमेजान की सीधे-सीधे जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन उसे उपभोक्ता को सामान बेचने के पहले यह देखना चाहिए कि जो सामान वह बेच रही है, वह गुणवत्तापूर्ण है या नहीं। फोरम ने माना कि जूता बनाने वाली प्यूमा स्पोर्ट्स इंडिया प्रा.लि. ने घटिया क्वालिटी का जूता बनाकर सेवा में कमी की है। फोरम ने कंपनी को आदेश दिया कि वह परिवादी को जूते की कीमत दो हजार रुपए मय नौ प्रतिशत ब्याज के और हर्जाने के रूप में आठ हजार रुपए दे। परिवाद के व्यय के रूप में दो हजार रुपए भी कंपनी को देने होंगे।