सोशल मीडिया नियमन कुछ तर्क ये भी | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
और संघर्ष काम आया | अब सरकार को सोशल मीडिया के नियमन के लिए नियम बनाना ही होंगे | सरकार राजनीतिक दलों की शह पर अब तक इस विषय को टालती रही है | राजनीतिक दल चुनाव सहित अनेक कामों में सोशल मीडिया का उपयोग तो करते हैं परन्तु जनोपयोगी विषय पर दायें-बाएं हो जाते है और यह तक भूल जाते हैं कि इस मीडिया विधा से फैलते विचार और उपजता धन क्या गुल खिलाता है ? सरकार से इस विषय पर सीधा पंगा किसी एक दल ने नहीं लिया एक विचारक ने लिया | विचारक के एन गोविन्दाचार्य इसे लेकर अदालत तक गए | अब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक समय सीमा में इस विषय को नियमित करने का निर्देश दिया है |

भारत में सूचना क्रांति के दौर में सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण उपस्थिति है, लेकिन इसके दुरुपयोग से समाज को भारी नुकसान भी हो रहा है| इंटरनेट, कंप्यूटर और फोन के विस्तार के साथ आये इस नये माध्यम से अपेक्षा थी कि यह जानकारियों और संपर्कों का जोरदार जरिया बनेगा| एक सीमा तक ऐसा हुआ भी और इसकी संभावनाओं को लेकर अभी भी आशान्वित रहा जा सकता है, परंतु फर्जी खबर, अफवाह, अभद्रता और अश्लीलता के कहर से इसे बचाने की कवायद पर भी ध्यान देना होगा| अभी अफवाहों और नफरत के संदेश भारत में भीड़ की हिंसा बढ़ाने की वजह बने हुए हैं|  यही चिंता और विदेश जाते धन की ओर ही तो विचारक गोविन्दाचार्य हमेशा ध्यान खींचते रहे |

अब सर्वोच्च न्यायालय ने मौजूदा स्थिति का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को सोशल मीडिया के संचालन के लिए नियमन का निर्देश दिया है| निर्दोष लोगों की ऑनलाइन ट्रोलिंग और उनके ऊपर अपमानजनक दोषारोपण तथा नफरत फैलाने की प्रवृत्तियों से क्षुब्ध होकर खंडपीठ के एक न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने यहां तक कह दिया कि वे स्मार्ट फोन का इस्तेमाल बंद करने का विचार कर रहे हैं| वैसे भी सोशल मीडिया की समस्याओं और उनके समाधान को लेकर दुनिया के अनेक देशों में चर्चा चल रही है| आलोचनाओं के दबाव में फेसबुक, ट्वीटर और यूट्यूब जैसे मंचों ने आपत्तिजनक सामग्रियों और खाताधारकों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की है| व्हाट्सएप ने भी दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ ठोस उपाय किये हैं, लेकिन संकट का हल होता नहीं दिख रहा है| 

संकट तले भी तो कैसे एक खाता बंद होता है, तो चार नये खुल जाते हैं| अक्सर ऐसे खाताधारक फर्जी पहचान से सक्रिय होते हैं| इस कारण रोक लगाना या उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना मुश्किल होता है| एक चुनौती यह भी है कि सोशल मीडिया कंपनियां नियमन नहीं चाहती हैं, वे अपने स्तर पर सुधार करने का दावा कर रही हैं| एक तर्क यह भी है कि सरकारी नियमन और नियंत्रण से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार को चोट पहुंच सकती है| सर्वोच्च न्यायालय ने भी निजता का ध्यान रखने की हिदायत दी है| इस संबंध में कंपनियों की कोशिशों, सरकारी नियमन और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करनेवालों के साझा प्रयास से दुरुपयोग को रोका जा सकता है| 

स्मरण रहे कि पिछले साल के शुरू में जर्मनी में एक कानून बनाया जा चुका है और यूरोपीय संघ भी प्रभावी नियमन पर विचार कर रहा है|  अमेरिकी संसद ने कंपनियों के प्रमुखों को ठोस पहलकदमी का आदेश दिया है| ऑस्ट्रेलिया में इस साल कानून लागू हुआ है कि दुरुपयोग को न रोक पाने पर कंपनियों के शीर्ष अधिकारी दंडित होंगे, रूस और चीन में भी कड़े कानून हैं| भारत सरकार अब तक क्यों गाफिल रही समझ से परे है |  

देश में इसके लिए नियमन पर विचार करते हुए इन देशों के अनुभवों का लाभ उठाया जा सकता है| कंपनियों समेत जो लोग नियमन का विरोध कर रहे हैं, उन्हें इतिहास से जानना चाहिए कि जब भी संचार की नयी तकनीक आती है, तो एक समय के बाद समाज की बेहतरी को देखते हुए उसके बारे में कानूनी व्यवस्था की जाती है, अतः सोशल मीडिया का नियमन भी जरूरी है| इस नियमन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सामाजिक लाभ-हानि के साथ विज्ञापन से होने वाली आय का उपयुक्त हिस्सा भारत सरकार को मिलना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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