“भगवा” का कोई दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता | | EDITORIAL by Rakesh Dubey

NEWS ROOM
नई दिल्ली। पता नहीं क्यों कुछ लोग भारतीय सनातन संस्कृति के प्रतीक रंग “भगवा” को यहाँ-वहां जोड़कर कुछ ऐसी बातें कह रहे हैं जो देश की सनातन संस्कृति के इतिहास से एकदम विपरीत हैं।”भगवा” रंग और ध्वजा सनातन संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक है। यह सनातन धर्म से सम्बन्ध रखने वाले प्रत्येक आश्रम, मन्दिर पर फहराया जाता है। 

यही श्रीराम, श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथों पर फहराया जाता था और छत्रपति शिवाजी सहित सभी मराठों की सेनाओं का भी यही ध्वज था। यह धर्म, समृद्धि, विकास, अस्मिता, ज्ञान और विशिष्टता का प्रतीक है। इन अनेक गुणों या वस्तुओं का सम्मिलित द्योतक है यह भगवा ध्वज है। देश के सारे शंकारचार्य से लेकर छोटे-बड़े संन्यासी इसी रंग के बाने में रंगे हुए है। आज़ादी के बाद देश का ध्वज निर्धारित करते समय इस रंग को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इस रंग की आलोचना करने वालों को यह विचार करना चाहिए जिस महल में उनका बचपन बीता उसके शीर्ष पर स्थित राघोजी के मन्दिर के ध्वज का रंग भी तो भगवा ही है।

दुर्भाग्य है, राजनीति ने देश में रंगों को बाँट दिया है | बड़े राजनीतिक दल हर चुनाव में मतदाता के आकार के अनुसार अपना अपने रंग का झुकाव तय करते हैं | कभी कांग्रेस भगवा होने को कोशिश करती है, भाजपा अपने ने तो केसरिया आयताकार ध्वज में हरे रंग का एक छोटा आयत जोड़ ही रखा है. तीसरा रंग नीला सुविधा का संतुलन बनाते हुए किसी भी रंग से जुड़ता टूटता रहता है | यही सोच नीचे तक भेजने को कोशिश राजनीतिक दल करते आ रहे हैं और निरंतर कर रहे हैं | अब इसे उछाल कर प्रसिध्दि बटोरने के काम भी हो रहे हैं |

देश में मान्यता है “भगवा”रंग केसरिया रंग त्याग के प्रतीक हैं। यह उगते हुए सूर्य के रंग है। इसका रंग अधर्म के अंधकार को दूर करके धर्म का प्रकाश फैलाने का संदेश देता है। यह हमें आलस्य और निद्रा को त्यागकर उठ खड़े होने और अपने कर्तव्य में लग जाने की भी प्रेरणा देता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि जिस प्रकार सूर्य स्वयं दिनभर जलकर सबको प्रकाश देता है, इसी प्रकार हम भी निस्वार्थ भाव से सभी प्राणियों की नित्य और अखंड सेवा करें। मान्यता यह भी है यह रंग यज्ञ की ज्वाला का भी रंग है। यज्ञ सभी कर्मों में श्रेष्ठतम कर्म बताया गया है। यह आन्तरिक और बाह्य पवित्रता, त्याग, वीरता, बलिदान और समस्त मानवीय मूल्यों का प्रतीक है, जो कि हिन्दू धर्म के आधार हैं। यह केसरिया रंग हमें यह भी याद दिलाता है कि केसर की तरह ही हम इस संसार को महकायें।यह रंग संसार में विविधता, सहिष्णुता, भिन्नता, असमानता और सांमजस्य के प्रतीक हैं।

सही अर्थों में “भगवा” दीर्घकाल से हमारे इतिहास का मूक साक्षी रहा है। इसमें हमारे पूर्वजों, ऋषियों और माताओं के तप की कहानियां छिपी हुई हैं। यही हमारा सबसे बड़ा गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरक है। मौलिक भगवा ध्वज में कुछ भी लिखा नहीं जाता। लेकिन मंदिरों पर लगाये जाने वाले ध्वजों में कहीं ओउम आदि लिखा जाता है। इसी प्रकार संगठन या व्यक्ति विशेष के ध्वज में अन्य चिह्न हो सकते हैं, जैसे अर्जुन के ध्वज में हनुमान का चिह्न था। लेकिन सनातन धर्म से सम्बन्धित अधिकांश मठ मन्दिर अपने ध्वज का आधार रंग “भगवा” ही रखते हैं और रखते रहेंगे | यह आपका दृष्टिदोष हो सकता है, जो इसका कोई और अर्थ निकालें |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!