इंदौर। सहायक प्राध्यापक भर्ती प्रक्रिया में महीनों पहले चयन पत्र प्राप्त कर नियुक्ति की बाट जोह रहे उम्मीदवारों को अब एक बार फिर परिणाम का इंतजार करना पड़ रहा है। परिणाम जारी करने के 11 महीने बाद मप्र लोक सेवा आयोग (पीएससी) परिणाम में संशोधन कर रहा है। आरक्षण की विसंगति दूर करने के साथ ही महू के आंबेडकर विश्वविद्यालय के पदों को पूर्व घोषित परिणाम में शामिल करने को संशोधन की वजह बताया जा रहा है। महीनों बाद हो रहे संशोधन की आहट से पूर्व चयनित उम्मीदवारों की दिल की धड़कनें बढ़ गई हैं।
पीएससी ने बीते साल अगस्त-सितंबर में सहायक प्राध्यापक चयन परिणाम जारी किया था। इसके बाद चयनित ढाई हजार से ज्यादा उम्मीदवारों को चयन पत्र जारी कर दिए गए थे। परिणामों के बाद विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हुई। नतीजा हुआ कि उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं हो सके। इसी बीच चयनित उम्मीदवार इंदौर से लेकर भोपाल और जबलपुर तक में नियुक्ति की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन करते रहे। अब पीएससी ने घोषणा कर दी है कि आरक्षण और आंबेडकर विश्वविद्यालय के पदों को भी शामिल करने के चलते संशोधित परिणाम फिर जारी किया जाएगा। बीते तीन दिनों में जैवरसायन, संस्कृत और नृत्य जैसे विषयों के परिणाम फिर से जारी कर दिए लेकिन बड़े विषयों के परिणाम संशोधन होकर जारी होना बाकी हैं। चयनित उम्मीदवारों की घबराहट बढ़ गई है कि संशोधित परिणाम के चलते कहीं वे चयन सूची से ही बाहर नहीं हो जाएं।
संशोधन का कारण
असल में उच्च शिक्षा विभाग के साथ ही महू के आंबेडकर विश्वविद्यालय ने भी सहायक प्राध्यापक के पद की नियुक्ति का जिम्मा पीएससी को सौंपा था। दोनों के लिए एक साथ पीएससी ने प्रक्रिया आयोजित की। यह प्रक्रिया शुरू से आखिर तक विवादों में रही। असल में बार-बार संशोधन कर जल्दबाजी में परीक्षा तो हो गई लेकिन परिणाम जारी करने से पहले आंबेडकर विश्वविद्यालय ने पीएससी से आग्रह किया कि उसके पदों पर नियुक्ति नहीं की जाए। ऐसे में पीएससी ने भी आंबेडकर विश्वविद्यालय के 43 पदों को छोड़कर बाकी के परिणाम जारी कर दिए। महीनों बाद अब शासन और पीएससी को समझ आया कि असल में दोनों के लिए परीक्षा एक साथ हुई थी। कई उम्मीदवारों ने अपनी प्राथमिकता में आंबेडकर विश्वविद्यालय के पद पर चयन को ऊपर रखा था। असल में विश्वविद्यालय पद होने से उन्हें आजीवन तबादले के भय से मुक्ति मिल रही थी। परीक्षा में प्राथमिकता चुनने वाले ऐसे कई उम्मीदवारों को टॉपर होने के बाद भी बीते परिणाम की चयन सूची में रखा नहीं गया क्योंकि आंबेडकर विश्वविद्यालय का परिणाम रोका गया था। अब शासन को समझ आया कि आगे यह कानूनी परेशानी पैदा कर सकता है क्योंकि एक ही चयन प्रक्रिया में टॉपर होने के बावजूद कुछ उम्मीदवारों का सूची से बाहर होना विवाद पैदा करेगा। वहीं आंबेडकर विश्वविद्यालय की नियुक्ति रुकने में उनका कोई दोष नहीं है। इसी के साथ कोर्ट के आदेश पर दिव्यांगों को दिए आरक्षण की विसंगति भी दूर करना जरूरी है। दोनों कारणों से अब परिणाम को बदला जा रहा है।
कांग्रेसी हुए नाराज
इधर शासन द्वारा सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा में नियुक्ति प्रक्रिया आगे बढ़ाने के निर्णय के खिलाफ कांग्रेस और आरटीआई कार्यकर्ता सरकार के विरोध में खड़े हो गए हैं। दरअसल बीती भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुई इस परीक्षा में ये लोग गड़बड़ी के आरोप लगाते हुए बिना जांच के नियुक्ति नहीं दिए जाने की मांग कर रहे हैं। सरकार के रुख से अब तक इन्हें जांच शुरू होने का भरोसा था लेकिन अब उच्च शिक्षा विभाग के रुख से ये नाराज हो गए हैं।