मप्र 2 मंत्री: बाला बच्चन और जीतू पटवारी में तनातनी | MP NEWS

भोपाल। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार के 2 मंत्री बाला बच्चन और जीतू पटवारी के बीच तनातनी बढ़ गई है। मामला प्राइवेट कॉलेजों की फीस निर्धारण का है। दोनों मंत्री चाहते हैं कि यह काम वो करें। जीतू पटवारी का कहना है कि भाजपा शासनकाल की परंपरा का पालन किया जाएगा जबकि बाला बच्चन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था बदल दी है। 

इंदौर के पत्रकार श्री सुनील सिंह बघेल की रिपोर्ट के अनुसार मामला प्रदेश के निजी विश्वविद्यालयों के तहत आने वाले मेडिकल कॉलेज व विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की फीस तय करने का है। तकनीकी शिक्षा मंत्री बाला बच्चन का कहना है कि अगले तीन सालों के लिए निजी विश्वविद्यालयों की फीस, प्रवेश एवं फीस विनियामक आयोग (एएफआरसी) तय करेगा, जबकि उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी का कहना है कि मेडिकल कॉलेजों को छोड़कर बाकी की फीस तय करने का अधिकार एएफआरसी को नहीं है। यह उनके मंत्रालय के अधीन आने वाले निजी विश्वविद्यालय आयोग करेगा। 

मंत्रियों की इस खींचतान के चलते निजी विश्वविद्यालयों में व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की फीस तय करने का काम रुका पड़ा है। एएफआरसी ने जनवरी में ही फीस तय करने को लेकर पब्लिक नोटिस जारी किया था। प्राइवेट यूनिवर्सिटी की लॉबी का भी दबाव यही है कि फीस निर्धारण का काम एएफआरसी के पास न जाए। 

जो परंपरा चली आ रही है, इस बार भी उसी का पालन किया जाएगा
निजी विवि विनियामक आयोग के गठन की शुरुआत से ही प्राइवेट यूनिवर्सिटी के अधीन आने वाले कॉलेजों की फीस हम तय करते रहे हैं। जो परंपरा (भाजपा सरकार के दौरान) चली आ रही है, उसी का पालन होगा। मेडिकल को छोड़कर बाकी कोर्स की आगामी तीन सत्रों की फीस आयोग ही तय करेगा।
जीतू पटवारी, उच्च शिक्षा मंत्री

व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों की फीस तो हम ही तय करेंगे 
व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों की फीस तय करने का काम एएफआरसी का ही है। अधिनियम में भी यह अधिकार एएफआरसी को मिला है। हम निर्णय भी ले चुके हैं और आगामी तीन शैक्षणिक सत्रों की फीस हम तय करेंगे। जो प्राइवेट यूनिवर्सिटी ब्योरा नहीं देगी, नियमानुसार कार्रवाई होगी।  
बाला बच्चन, गृह व तकनीकी शिक्षा मंत्री

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बना है एएफआरसी
निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में फीस के निर्धारण के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हर राज्य में एडमिशन और फीस रेगुलेटरी कमेटी (एएफआरसी) बनाई गई थी। बाद में निजी विवि विनियामक आयोग का गठन हुआ। यही आयोग प्राइवेट यूनिवर्सिटी में फीस तय करने लगा है, जबकि आयोग के अधिनियम में उसे फीस तय करने का नहीं, सिर्फ समीक्षा का ही अधिकार था। बावजूद पिछले 10 साल एएफआरसी अपने अधिकार को लेकर चुप्पी साधे रही। कमलनाथ सरकार के आने के बाद इस विसंगति पर ध्यान गया। 

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