अगर आप किसी मामले की फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कराने थाने या कोतवाली जाते हैं और पुलिस अधिकारी आपकी एफआईआर दर्ज नहीं करती, तो आप क्या करेंगे। ज्यादातर लोग वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या किसी नेता के पास न्याय मांगने जाते हैं परंतु यदि तब भी सुनवाई ना हो तो ? चिंता मत कीजिए, कानून आपके पास है। किसी अपराध की शिकायत मिलने पर एफआईआर दर्ज करने से मना करने वाले पुलिस अधिकारी को 2 साल तक की जेल हो सकती है। साथ ही उसके ऊपर जुर्माना लग सकता है।
थाना प्रभारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 166 के तहत केस फाइल कर दें
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा के मुताबिक दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 154 और 155 के तहत थाना प्रभारी की लीगल ड्यूटी है कि वो किसी भी अपराध की शिकायत मिलने के बाद एफआईआर दर्ज करे। साथ ही शिकायत देने वाले को इसकी रिसीविंग यानी पावती मुफ्त में दे। अगर पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से मना करता है, तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 166 के तहत कार्रवाई की जा सकती हैै।
सीआरपीसी की धारा 156 के तहत न्यायालय में याचिका दाखिल करें
उन्होंने बताया कि धारा 166 के तहत ऐसे पुलिस अधिकारी को 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा पीड़ित व्यक्ति के पास जिले के पुलिस अधीक्षक और पुलिस महानिदेशक के पास भी शिकायत करने का विकल्प है। इसके बाद भी अगर पुलिस शिकायत नहीं दर्ज करती है, तो आप कोर्ट जा सकते हैं और मानवाधिकार आयोग की मदद ले सकते हैं। न्यायिक मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156 के तहत शक्ति मिली है कि वो पुलिस को मामले की शिकायत दर्ज करने का आदेश दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दिया है
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा ने बताया कि ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी गंभीर अपराध की शिकायत मिलने के बाद पुलिस अधिकारी को बिना किसी देरी के एफआईआर दर्ज करनी होगी। गंभीर अपराध के मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए जांच करने की भी जरूरत नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर पुलिस अधिकारी को किसी गंभीर अपराध की शिकायत मिलती है, तो वह तत्काल एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है।
क्या था ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार का मामला
ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में पुलिस के एफआईआर दर्ज नहीं करने के मामले फैसला सुनाया था। ललिला कुमारी एक नाबालिग थी, जिसको किडनैप कर लिया गया था। जब ललिता कुमारी के पिता भोला कामत इसकी एफआईआर दर्ज कराने थाने पहुंचे, तो पुलिस ने इनकार कर दिया। इसके बाद ललिता कुमारी के पिता भोला कामत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसको सुप्रीम कोर्ट ने बेहद गंभीरता से लिया और मामले को संविधान पीठ को भेज दिया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई की। इस दौरान शीर्ष अदालत ने पुलिस के एफआईआर दर्ज करने के तौर तरीके को लेकर भारत सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के मुख्य सचिवों, पुलिस महानिदेशकों और पुलिस कमिश्नरों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने को लेकर हाईकोर्ट के फैसलों और कानून के विशेषज्ञों की राय भी जानी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आदेश दिया कि गंभीर अपराधों की शिकायत मिलते ही पुलिस अधिकारी को एफआईआर दर्ज करनी होगी। वो इससे इनकार नहीं कर सकता है। अगर वो ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए।