नई दिल्ली। यौन अपराध यानी बलात्कार, छेड़छाड़ इत्यादि, से जुड़े मामलों में पीड़िताओं के साथ-साथ क्यों ना आरोपियों की पहचान गुप्त रखी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मसले का परीक्षण करने का निर्णय लिया है। याचिका में यौन अपराध के आरोपियों के संरक्षण को लेकर गाइडलाइंस बनाने की गुहार की गई है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के कारण ही यौन अपराधों में पीड़िता की पहचान गुप्त रखी जाती है।
जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई ने यूथ बार एसोसिएशन और रीपक कंसल द्वारा दायर इस याचिका पर केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। याचिका में कहा गया है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती है तब तक आरोपियों की पहचान गुप्त रखी जानी चाहिए। साथ ही याचिका में कहा गया कि यौन उत्पीड़न मामलों के आरोपियों की छवि और प्रतिष्ठा का संरक्षण किया जाना चाहिए और इसे लेकर दिशानिर्देश बनाया जाना चाहिए।
यूथ बार एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने कहा कि यौन अपराधों में झूठा आरोप लगाने पर व्यक्ति की पूरी जिंदगी तबाह हो जाती है। ऐसे कई उदाहरण है जब लोगों को ऐसे मामलों में झूठा फंसाया जाता है और वे खुदकुशी तक कर लेते हैं।
साथ ही याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना था कि ऐसे मामलों में झूठा आरोप लगाने से न केवल उसकी निजी जिंदगी तबाह हो जाती है बल्कि उसके परिवार के सदस्यों पर सामाजिक कलंक लग जाता है। लिहाजा ऐसी स्थिति से निपटने के लिए आरोपियों को संरक्षण मिलना चाहिए।
याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामलों में आरोपियों का नाम मीडिया में आने से उसकी प्रतिष्ठा पर बट्टा लग जाता है। छानबीन के बाद निर्दोष पाए जाने के बाद उसकी खोई प्रतिष्ठा वापस नहीं लौट पाती है। यौन अपराध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िताओं को संरक्षण देने के लिए विशाखा गाइडलाइंस बनाए थे, लिहाजा आरोपियों की छवि और प्रतिष्ठा के मद्देनजर उनके लिए भी गाइडलाइंस बनाया जाना चाहिए। याचिका में यह भी गुहार की गई है कि मीडिया में यौन अपराध के आरोपियों की पहचान तब तक नहीं बताई जानी चाहिए जब तक छानबीन पूरी नहीं हो जाती।