भू-अर्जन अधिनियम: किसानों को सरकारी संरक्षण समाप्त, कंपनियां डायरेक्ट डील करेंगी | MP KISAN SAMACHAR

भोपाल। वर्षों पहले धनवान कारोबारी अपनी शक्तियों का प्रयोग करके किसानों की जमीनें हथिया लिया करते थे। इस तरह की प्रताड़नाओं से बचाने एवं किसानों को उनकी जमीनों का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने भू-अर्जन अधिनियम (MADHYA PRADESH BHOO ARJAN ADHINIYAM) बनाया था। अब उसमें संशोधन किया जा रहा है। राज्य सरकार भू-अर्जन अधिनियम के शेड्यूल (2) व (47) में जमीन खरीदी की एक निश्चित सीमा तय करने जा रही है, जिसके मंजूर होने के बाद कोई भी कंपनी, सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम या संस्था मप्र में जमीन की खरीदी कर सकेंगी। 

बताया गया है कि संशोधन के बाद कृषि भूमि (किसानों या ग्रामीणों के खाते की जमीन) 500 हेक्टेयर तक और शहरी क्षेत्र (शहरी लोगों के खाते की भूमि) की जमीन 50 हेक्टेयर तक होगी। इस पर वरिष्ठ सचिव समिति ने स्वीकृति दे दी है। अब इसे कैबिनेट की मंजूरी के बाद विधानसभा में रखा जाएगा। 2013 के केंद्र सरकार के भू-अर्जन अधिनियम में यह उल्लेख है कि राज्य सरकारें भूमि अधिग्रहण की एक सीमा खुद तय करें। इसी कड़ी में राज्य सरकार ने कवायद शुरू की है। 

बताया जा रहा है कि सरकार जल्द ही इसे लागू करेगी। इसके बाद किसी भी कंपनी या संस्था को निजी व्यक्तियों की कृषि या शहरी भूमि खरीदने के लिए सरकारी प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत नहीं होगी। वो सीधे जमीन मालिकों से डील करेंगे और निर्धारित सीमा तक जमीनों की खरीदी कर सकेंगे। पूरी प्रक्रिया में सरकारी हस्तक्षेप समाप्त हो जाएगा। 

अब तक किसान फायदे में और कंपनियां कानून से बंधी होतीं थीं

अभी किसी कंपनी या संस्था को जमीन लेनी होती थी तो भू-अर्जन अधिनियम के तहत उसे राज्य सरकार के पास जाना पड़ता था। राज्य सरकार फिर अधिनियम के तहत आगे की कार्रवाई करती थी। इसमें बाजार दर से जमीन की दोगुनी कीमत अथवा जमीन के बदले दूसरी जमीन की शर्तों को पूरा करना पड़ता था। ऐसे में कंपनी या संस्था को ज्यादा पैसा देना पड़ते थे और जमीन के मालिक फायदे में रहते थे। सरकार उनके हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य थी। 

कंपनियों को क्या फायदा होगा

वर्तमान प्रक्रिया में कंपनी या संस्था को जमीन अधिग्रहण में डेढ़ से दो साल का इंतजार करना पड़ता था। ऐसे में प्रोजेक्ट काॅस्ट बढ़ जाती थी। यह स्थिति तब थी, जब सरकारी प्रक्रिया पूरी होने का समय छह माह तय है। नए संशोधन में सबकुछ कंपनी या संस्था पर निर्भर रहेगा। उसके प्रतिनिधि खुद निजी स्तर पर भूमि मालिकों से बात करेंगे। राजस्व विभाग का तर्क है कि इससे समय की बचत होगी। कंपनी खुद जमीन खरीदेगी तो उसकी प्रोजेक्ट काॅस्ट घटेगी और वे मप्र में निवेश में रुचि दिखाएंगे। 

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