युवा भारत : बीमार तन, टूटा मन और लुटता धन | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। एक सर्वे सामने आया है, विश्व के 20 में से 15 सर्वाधिक प्रदूषित शहर भारत में हैं। तेजी से होते शहरीकरण और बिगड़ते हालत ऐसे ही रहे हैं तो आने वाले दिनों में विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 30 शहरों में से 20 भारत के होंगे | बड़े शहरों में यातायात अभी रेंग रहा है, थोड़े दिन में घिसटता प्रतीत होगा। मुंबई में अभी यातायात की गति आठ किलोमीटर प्रति घंटा है, बेंगलूरु में हालत और खराब है। हैदराबाद की स्थिति थोड़ी बेहतर हो सकती है, कोलकाता में भी सुधार हो रहा है | दिल्ली के हालात निकट भविष्य में तो मुंबई या बेंगलूरु जैसे ही होंगे, वह भी तेजी से उस दिशा में बढ़ रही है। दिल्ली -मुंबई-कोलकाता-बेंगलूरु-हैदराबाद में 9 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। मुंबई की आबादी का 50 प्रतिशत हिस्सा झुग्गियों में रहता है। हमारी वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई की आबादी न्यूजीलैंड के दोगुनी है और जीवन की परिस्थितियां भी बेहद खराब हैं। कोलकाता की स्थिति भी ठीक नहीं और बेंगलूरु तेजी से उस दिशा में बढ़ रहा है। देश का कोई शहर बिना झुग्गियों के नहीं है।

मुंबई में जिसे खोली कहा जाता है, भोपाल में वह झुग्गी कही जाती है, दिल्ली में वह अवैध कालोनी हो जाती है। यहां जीवन स्तर उतना खराब नहीं रहता जितना मुंबई और भोपाल में है, लेकिन बहुत बेहतर स्थिति भी नहीं होती। चाहे जो भी हो, जितनी आबादी किसी एक देश की है, उतने लोग तो बड़े शहरों में अवैध तरीके से रहते हैं। हमारे सरकारी अस्पताल, चिकित्सा सुविधा और शिक्षा व्यवस्था की हालत खराब है। इन सभी जगहों पर भीड़ है और इनका स्तर उप सहारा अफ्रीका वाला है|

अब सवाल यह है कि देश के शहर इतने बुरे हैं तो लाखों लोग अपने अपेक्षाकृत बेहतर गांव छोड़कर इन शहरों में क्यों चले आते हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि गांवों की हालत भी बेहतर नहीं है। हवा की गुणवत्ता को छोड़ दें तो शेष सभी मानकों पर गांव शहरों से भी बदतर हैं। भले ही भारत दुनिया की सबसे बड़ी तीन या पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो लेकिन शहरों को लेकर हमारी मानसिकता उस आडंबर से प्रभावित है कि “शहर बुरे होते हैं और गांव अच्छे।“ डॉ आंबेडकर और गांधी जी का वह चर्चित संवाद है जिसमें गांधी जी ने कहा था कि भारत गांवों में रहता है,जवाब में डॉ आंबेडकर ने सवाल किया: लेकिन क्या ऐसा हमेशा चलता रहना चाहिए? केंद्रीय मंत्रिमंडल में हमेशा ग्रामीण विकास मंत्रालय रहा है लेकिन आजादी के बाद पांच दशकों तक शहरी विकास मंत्रालय नहीं रहा, जैसे तैसे शहर बसे अब स्मार्ट हो रहे हैं। भारत गांवों का देश है इस रूमानियत ने देश के शहरों, उसके गरीबों का नुकसान किया, जबकि गांवों को भी कोई फायदा नहीं पहुंचा।

इस मानसिकता ने बहुत नुकसान पहुंचाया है |हम शहरों को बुरा और गांवों को अच्छा मानते हैं। ऐसे में शहरों का कभी सुनियोजित विकास ही नहीं हुआ। शहर झुग्गियों, बिल्डरों की बनाई इमारतों और माफियाओं के भरोसे थे हैं और रहेंगे । हमारे शहर बिना बुनियादी ढांचे के विकसित होते हैं। इस ढांचे की जरूरत तीन पीढ़ी बाद महसूस होती है जब पानी, बिजली, सड़क और मेट्रो की आवश्यकता उठ खड़ी होती है। आनन-फानन में जरूरी उपाय किए जाते हैं लेकिन फिर भी लाखों की तादाद में कारें और दोपहिया पार्किंग की जद्दोजहद में सड़कों पर जहां तहां खड़े किए जाते हैं। इसके शिकार केवल गरीब नहीं होते,मध्यम वर्ग होता है| जो दिन ब दिन नीचे की ओर जा रहा है | तमाम टैक्सों का दबाव और कम होती नागरिक सुविधा उसे नीचे खींच रही है | छोटे और मंझौले शहर थोड़ी प्राणवायु देते हैं, पर रोजगार के अवसर न होने से मध्यम से उसकी संतति दूर हो जाती है | छोटे और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे पैसा कमाने बड़े शहरों में जाते है और वहां की हालात उन्हें रोगी बना देते हैं, वे बीमार तन टूटा मन और हाथ डाक्टरों को देने के लिए धन लेकर लौटते हैं | क्या अच्छे दिन ऐसे ही होते हैं |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!