इंदौर। पर 35 दिनों से बना रहस्य आखिरकार खत्म हो गया है। शनिवार को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की नवनियुक्त कुलपति की मौजूदगी में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीईटी) निरस्त कर प्रावीण्य सूची के आधार पर प्रवेश देने का निर्णय लिया गया। इससे पहले कुलपति डॉ. रेणु जैन ने शासन व राजभवन से भी राय ली। इसे अब 17 हजार विद्यार्थियों को थोड़ी राहत जरूर मिली है, वहीं ऑनलाइन परीक्षा करवाने वाली कंपनी पर कार्रवाई होगी। सीईटी पर निर्णय लेने के लिए कुलपति ने शनिवार को ईएमआरसी में बैठक बुलाई। यहां प्रवेश प्रक्रिया शुरू करने को लेकर चर्चा की गई। सूत्रों के अनुसार कुछ विभागाध्यक्ष सीईटी खत्म कर प्रावीण्य सूची के आधार पर प्रवेश देने के पक्ष में नजर आए।
वहीं यह सवाल भी खड़ा हुआ कि परीक्षा निरस्त होने पर विद्यार्थी अदालत की शरण भी ले सकते हैं। वहीं कुछ विभागाध्यक्षों ने सीधे काउंसलिंग का सुझाव दे डाला। मामले में 14 जुलाई को ली गई विधिक राय भी बैठक में रखी गई। कुलपति का कहना है कि तकनीकी कारणों के चलते सीईटी संपन्न नहीं हुई थी। इससे विवि की छवि धूमिल हुई है। इसके चलते बैठक में सीईटी को निरस्त करने का फैसला लिया है। प्रवेश के लिए कम समय होने के चलते सत्र 2019-20 में प्रावीण्य सूची के आधार पर एडमिशन दिए जाएंगे। अगले सत्र में विवि से संचालित कोर्स में ऑनलाइन परीक्षा ही करवाई जाएगी।
23 जून को सीईटी में तकनीकी गड़बड़ी आने के अगले ही दिन यानी 24 जून को शासन ने विवि में धारा 52 लगा दी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने पहले ही सीईटी के विकल्प तलाश लिए थे। बाकायदा प्रस्ताव बनाकर राजभवन और शासन को भेज दिया था। यहां तक कि विवि के अधिकारी भी भोपाल जाकर उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त को दो दिन तक विकल्प समझाकर आए, परंतु मप्र विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के तहत इस मुद्दे पर दोनों सीधे फैसला नहीं ले सकते थे। इसलिए सीईटी की बजाए कुलपति की नियुक्त के लिए प्रयास तेज किए गए।
सीईटी पर निर्णय नहीं होने से विद्यार्थियों का काफी नुकसान हो रहा है, क्योंकि उनके पास दाखिले के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है। 14 अगस्त तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी करनी है। कुलपति डॉ. जैन की मानें तो प्रवेश के लिए 31 अगस्त तक समय देने के लिए शासन और राजभवन से अनुरोध करेंगे।