खराब परिणाम: शिक्षकों के बजाय निरीक्षणकर्ता अधिकारियों की परीक्षा होना चाहिए | KHULA KHAT

कन्हैयालाल लक्षकार। कम परीक्षा परिणाम को आधार बनाकर शिक्षकों की परीक्षा लेना अव्यवहारिक व जलिल करने वाला तानशाही कदम है। खराब परीक्षा परिणाम पर शिक्षा विभाग चिंतित है तो कार्रवाई अधिकारियों पर होना चाहिए व परीक्षा भी निरीक्षण कर्ता आला अधिकारियों की ही होना चाहिए। 

"गंगा" गंगोत्री से साफ होगी न कि समुद्री मुहाने साफ करने से। प्रदेश के सभी शासकीय कर्मचारियों के लिए मप्र सिविल सेवा आचरण नियम बने हुए हैं; इनके तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। शिक्षकों के लिए पृथक से शिक्षा संहिता मार्ग दर्शन का कार्य करती है। कम परीक्षा परिणाम के कारणों को खोजकर उन्हें दूर किया जाना तो व्यवहारिक है। शिक्षकों एवं विद्यालयों की बुनियादी आवश्यकताओं को लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा है । शिक्षकों के आर्थिक प्रकरणों में विभागीय लापरवाही व भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है । परिणाम को आधार बनाकर परीक्षा संचालित करना खुद शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर ही प्रश्न चिन्ह है। 

किसान भी बगैर बीजारोपण के केवल खरपतवार ही पा सकता है फसलों को कीट प्रकोप से बचाने के लिए प्रयास करता है न कि फसल ही नष्ट कर दे । वर्षभर सतत् निरीक्षण जिसमें जनशिक्षक, डीआरजी, बीआरसी, प्राचार्य, डीईओ, डीपीसी, संभागीय संयुक्त संचालक, आयुक्त,संचालक व संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संचालनालय व राज्य शिक्षा केंद भोपाल के सचिव स्तर के आला अधिकारी, राजस्व विभाग से तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर के साथ कभी-कभी जन प्रतिनिधि भी विद्यालयों का निरीक्षण करते हुए अपनी कार्रवाई शिक्षा विभाग को प्रेषित करते हैं । इनके सुझाव शिक्षकों द्वारा समय-समय पर अपने स्तर से लागू करने के भरसक प्रयास किये जाते है । पिछले छः वर्षो से शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया का दिखावा करते हुए आर्थिक शोषण कर अतिथि शिक्षकों को भर्ती का लॉलीपॉप देकर शिक्षा विभाग कौन सी उपलब्धि हासिल करने वाला है । 

गैर शैक्षणिक कार्य जो विद्यालय स्तर पर शिक्षकों से करवाये जाते हैं "मेपिंग, अपडेशन, छात्रवृत्ति, बैंक खाता, आधार कार्ड, समग्र आयडी,एमडीएम" जैसे कार्यो के साथ विद्यालय किचनशेड व शौचालय की स्वच्छता (बगैर सफाईकर्मी) के लिए आज भी सीधे-सीधे शिक्षकों को दोषी ठहराते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से भी आला अधिकारी गुरेज नहीं करतें हैं । ये कार्य बच्चों की पढ़ाई में विभागीय रोड़ा है, पढ़ाई का अवसर दिये बगैर परिणाम की आशा बेमानी है । इनसे सब परिचित होते हुए भी पल्ला झाड़ते नजर आते है । शिक्षा विभाग परिणाम को आधार बनाकर शिक्षकों की परीक्षा लेकर अपनी भर्ती प्रक्रिया व सेवाकालिन प्रशिक्षण पर खुद प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहा है । वर्षो से अनुभवी शिक्षकों पर अविश्वास है ; वह भी तब जबकि प्रतिवर्ष सेवाकालिन विषयमान प्रशिक्षण से शिक्षकों को अपडेट किया जाता रहा है । शिक्षकों की परीक्षा लेकर जवाबदार अपनी जवाबदेही से बचने का आसान बहाना ढ़ूंढ़ रहे है।  

इससे शिक्षकवर्ग कुपित होकर आंदोलित होते है तो विभागीय छवि धूमिल करने के लिए आला अधिकारी ही जवाबदार होंगे । यह भी देखना चाहिए कि कहीं सरकार व विभाग को बदनाम करने का षडयंत्र तो नहीं है व वांछित उद्देश्य प्राप्त होगा ?  शिक्षक अभी भी यह विचार कर रहा है कि मुझे कब विद्यालय में केवल और केवल बच्चों को पढ़ाने व सर्वांगीण विकास करने का अवसर मिलेगा ?
लेखक कन्हैयालाल लक्षकार, मप्र तृतीय वर्ग शास कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष हैं। 

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