भोपाल। राजधानी के ऐसे इलाके जहां हरे-भरे पेड़-पौधों की संख्या अधिक हैं, वहां इन ठीक वैसी ही आवाज गूंज रही है, जो पचमढ़ी (Pachmarhi) और अमरकंटक (Amarkantak) के जंगलों में गूंजती हुई सुनाई देती है। यह आवाज एक खास किस्म का कीड़ा निकालता है, जिसका नाम सिकाडा (Cicada Insect) है। हेमिपटेरा प्रजाति (Hemiptera species) का यह कीड़ा पेड़ों पर पाया जाता है, पेड़ों की छाल से यह पानी अवशोषित करता है, और सूखी पत्तियों को अपना भोजना बनाता है। शाहपुरा से लेकर त्रिलंगा पहाड़ी, होशंगाबाद रोड पर बरकतउल्ला विश्वविद्यालय परिसर(Barkatullah University campus), कोलार रोड पर स्वर्ण जयंती पार्क (Golden jubilee park) समेत कई कॉलोनियों में घरेलू पेड़ों से भी इस कीड़े की तेज आवाजें इन दिनों सुनाई दे रही हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुदेश वाघमारे के मुताबिक सिकाडा कीट ऊष्ण कटिबंधीय (गर्म) इलाकों में पाए जाते हैं। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पार करते ही इनकी संख्या में भी भारी इजाफा होता है। लेकिन 50 डिग्री सेल्सियस तापमान होने पर ये मरने लगते हैं। जहां यह कीट पाए जाते हैं वहां गर्मियोंभर इनकी आवाज गूंजती रहती है। मैटिंग सीजन होने के कारण यह इस वक्त सर्वाधिक सक्रिय रहते हैं। सिकाडा कीट जंगल के ईको-सिस्टम का एक हिस्सा है। जो सूखे और सड़े-गले पत्तों को खाकर अपना गुजारा कर लेता है।
राजधानी परियोजना प्रशासन के फॉरेस्ट विंग के निदेशक संजय श्रीवास्तव के मुताबिक इस दफा पहली बार भाेपाल के सिटी फाॅरेस्ट में सिकाडा की आवाज गूंज रही है। यह कीट झुंड में रहता है और कई बार एक जगह से दूसरी जगह माइग्रेट करता है। हालांकि इससे पेड़ों को किसी तरह का नुकसान नहीं है।
पचमढ़ी में हर वक्त गूंजती रहती है सिकाडा की आवाज:
पचमढ़ी के जंगलों में हर वक्त एक आवाज गूंजती रहती है। कभी धीमी तो कभी तेज होती यह गूंज कई हजार सिकाडा कीड़ों के एक साथ आवाज निकालने के कारण सुनाई देती है। यही हाल अमरकंटक का भी है, यहां भी हजारों-लाखों की कीड़ों की गूंज एक साथ सुनाई देती है।
साइलेंट वैली ही एकमात्र जगह जहां नहीं हैं सिकाडा:
केरल के उत्तरी हिस्से में नीलगिरी की पहाड़ियों में मौजूद साइलेंट वैली नेशनल पार्क ही एकमात्र ऐसा जंगली क्षेत्र है जहां सिकाडा कीट नहीं पाए जाते हैं। सिकाडा की गैरमौजूदगी के कारण यहां शांति रहती है।