इंदौर। माणिकबाग पैलेस (Manikbagh Palace) का निर्माण 90 वर्ष पूर्व किया गया था माणिकबाग तत्कालीन समय की सर्वाधिक आधुनिक इमारत थी। तीस के दशक में भवन में बिजली की फिटिंग, एयर कंडीशनिंग, धातु के फ्रेम में हाइड्रोलिक दरवाजे और बाथरूम में नलों का उपयोग किया गया था। किचन में भी रेफ्रिजरेशन की व्यवस्था थी। वहीं भवन में ईंट और स्थानीय पत्थरों का भी प्रयोग हुआ है। विंडो शेडिंग डिज़ाइन पूरी तरह भारतीय छज्जा शैली वाली हैं।
इंटीरियर डिजाइनर ने किया था डिजाइन
जर्मन आर्किटेक्ट एकॉर्ट मुथिसियास ने इंटीरियर डिजाइनर (interior designers) इलिन ग्रे, ब्रांकुसी और इवान द सिल्वा के साथ माणिकबाग पैलेस बनाया। यह उनका शुरुआती दौर का काम था। इसके बाद यूरोप में मुथिसियास की लोकप्रियता बढ़ी। महाराजा की मुथिसियास से मुलाकात ऑक्सफोर्ड में हुई थी जो दोस्ती में बदल गई। मुथिसियास जर्मनी के बाउहाउस स्कूल के स्टूडेंट थे। स्कूल ने दुनिया को क्रांतिकारी और आधुनिक डिजाइन दिए। बाउहाउस का प्रमुख सिद्धांत था फॉर्म फॉलो फंक्शन, यानी हर दिन इस्तेमाल होने वाली चीजें भी सुंदर होनी चाहिए। इन्हीं बातों का स्पष्ट प्रभाव पैलेस पर दिखाई दिया। पैलेस के इंटीरियर में उपयोग की गई चीजें एंटीक का दर्जा रखती थीं। विश्व प्रसिद्ध एंटीक एग्जीबिशन के कैटलॉग में इन्हें आज भी देखा जा सकता है।
पैलेस की इन्हीं विशेषताओं का जिक्र दुनियाभर में प्रकाशित हुआ। फ्रेंच और जर्मन भाषा में अधिक लिखा गया। शुरुआत 1970 में फ्रेंच मैग्जीन कोनेसाज़ द आर्ट्स से हुई। पत्रकार रॉबर्ट डेल्कांट्स ने चार पेज का आर्टिकल छापा। देश में आर्किटेक्चर एंड इंडिपेंडेंस (1997) और अ कन्साइज़ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न आर्किटेक्चर इन इंडिया (2002) पुस्तकों में भी माणिकबाग पैलेस का उल्लेख हुआ। वर्तमान में पैलेस में सीमा शुल्क और आबकारी विभाग का कार्यालय लगाया जा रहा है।