वैशाख पूर्णिमा 18 मई को है। इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। इस बार यह पूर्णिमा विशेष संयोगों में मनेगी। इन्ही विशेष संयोगों में 19 मई को मतदान का आखिरी चरण होगा और 23 मई को नई सरकार का फैसला आ जाएगा। इसीलिए ज्योतिषी इन संयोगों को महत्वपूर्ण मान रहे हैं। 18 मई को मंगल-राहु मिथुन राशि में रहेंगे एवं उनके सामने शनि-केतु धनु राशि में गोचर करेंगे। ऐसा दुर्लभ योग भी बनेगा कि सूर्य एवं गुरु ठीक परस्पर एक दूसरे पर दृष्टि रखेंगे।
वैशाख पूर्णिमा पर ऐसा योग 502 साल पहले 16 मई 1517 में बना था। अब ऐसा योग 205 साल बाद 2 जून 2224 को बनेगा। पं. मनीष शर्मा के अनुसार पूर्णिमा के अलावा भी ऐसे योग बनना ज्योतिष में अनोखा ही है। इसी योग में 23 मई को देश में किसकी सरकार बनेंगी यह तय होना है। सूर्य वृषभ में रहेंगे एवं गुरु की दृष्टि सूर्य पर होने के साथ ही चंद्र का शनि-केतु के साथ गोचर होना, परिवर्तन के आसार नहीं बनाता है। 149 वर्ष पहले 15 मई 1870 को वैशाख पूर्णिमा पर राहु मिथुन में थे और शनि केतु की युति धनु राशि में हुई थी। पं. शर्मा के अनुसार इस दुर्लभ संयोग से देश में मंहगाई बढ़ने के आसार हैं। पूर्णिमा पर विशाखा नक्षत्र रहेगा, जिसके स्वामी गुरु है। नवांश में भी शनि की दृष्टि सूर्य पर होगी। इससे विश्व के किसी हिस्से पर भारी भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाएं भी आ सकती है।
सिंह, कन्या, कुंभ, मीन के लिए अच्छे परिणाम
पूर्णिमा तिथि सुबह 4.10 बजे से शुरू होगी जो रात को 2.41 बजे तक रहेगी। भगवान बुद्ध का जन्म इस दिन होने से बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। राशियों के अनुसार यह संभलकर रहने का समय है। विशेषकर मिथुन एवं धनु वालों के लिए। कर्क एवं मकर को भी सतर्क रहना होगा। मेष, वृषभ, तुला एवं वृश्चिक को सामान्य और सिंह, कन्या, कुंभ एवं मीन के लिए बेहतर परिणाम की संभावना है।
सम सप्तक राज योग में होगा दान-पुण्य
वैशाख पूर्णिमा पर भगवान विष्णु ने नौवां अवतार लिया था। ज्योतिषविद अर्चना सरमंडल के अनुसार शास्त्रों के अनुसार वैशाख पूर्णिमा को किया स्नान दान व्रत पाप मुक्त करता है। इस दिन सम सप्तक राज योग बन रहा है। बृहस्पति के सामने सूर्य होने से यह राजयोग शुभ है। इस दिन व्रत रख चंद्रमा का हल्दी, चावल, अक्षत, दूध और जल से चंद्रमा का पूजन करें, ब्राह्मण भोजन कराएं, दान में पानी से भरा हुआ मटका दें।
इतिहास: 502 साल पहले क्या हुआ था
आज से 502 साल पहले 1517 में खतोली का युद्ध हुआ था। जो राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी लड़ा था। यह युद्ध राणा सांगा ने जीता और दिल्ली का सुल्तान उल्टे पैर वापस लौट गया। इब्राहिम लोधी इसी साल में आगरा की गद्दी पर बैठा था। सुल्तान सिकंदर शाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र इब्राहिम को गद्दी पर बिठाया गया। इब्राहिम लोदी एक सक्षम शासक सिद्ध नहीं हुए। वे राजाओं के साथ अधिक से अधिक सख्त होते गए। वे उनका अपमान करते थे और इस प्रकार इन अपमानों का बदला लेने के लिए दौलतखान लोदी, लाहौर के राज्यपाल और सुल्तान इब्राहिम लोदी के एक चाचा, अलाम खान ने काबुल के शासक, बाबर को भारत पर कब्ज़ा करने का आमंत्रण दिया। इब्राहिम लोदी को बाबर की सेना ने 1526 में पानीपत के युद्ध में मार गिराया और भारत पर मुगलों का आधिपत्य स्थापित हो गया था।