सिंधिया के रिकॉर्ड के लिए 3 सीटों पर कांग्रेस खतरे में | MP NEWS

Bhopal Samachar
ग्वालियर। कांग्रेस की तीसरी प्रतिष्ठित प्रतिमा ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस बार लोकसभा चुनाव में जो कुछ किया समीक्षा के बाद अब वो सुर्खियां बनने लगा है। उनके सामने कोई प्रत्याशी नहीं था। भाजपा के केपी यादव भी डमी कैंडिडेट ही थे, बावजूद इसके सिंधिया ना केवल खुद पूरी तरह क्षेत्र में लगे रहे बल्कि ग्वालियर लोकसभा सीट पर प्रभाव रखने वाले नेता और मंत्रियों को भी अपने प्रचार में व्यस्त कर दिया। सिंधिया की सबसे बड़ा रिकॉर्ड बनाने के जुनून ने ग्वालियर के कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह की जीत को खतरे में डाल दिया है। 

किस मंत्री के क्षेत्र में कितनी कम वोटिंग हुई

ग्वालियर में पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 8 फीसदी ज़्यादा वोटिंग हुई है। इसके बावजूद यह कहा नहीं जा सकता कि कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह चुनाव जीतने की स्थिति में है क्योंकि कांग्रेस के मंत्री और विधायकों के इलाकों में 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 14 फीसदी तक कम वोटिंग हुई है। 
मंत्री लाखन सिंह की भितरवार सीट पर विधानसभा में 72 फीसदी वोट पड़े थे। लोकसभा में 58 फीसदी वोटिंग हुई। यहां 14 फीसदी वोट घटे मतलब 35 हजार वोट कम पड़े। 
मंत्री प्रदुम्न की ग्वालियर सीट पर विधानसभा में 63 फीसदी वोट पड़े थे। लोकसभा में 58 फीसदी वोटिंग हुई। यहां 5 फीसदी वोट घटे मतलब 12 हजार वोट कम पड़े। 
मंत्री इमरती के इलाके में विधानसभा में 68 फीसदी वोट पड़े थे लोकसभा में 63 फीसदी वोटिंग हुई, यहां भी 5 फीसदी वोट घटे मतलब 14 हजार वोट कम पड़े।
विधायक मुन्ना लाल के इलाके में भी विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा में 4 फीसदी वोट कम पड़े, य़हां 54 फीसदी मतदान हुआ है विधानसभा में ये 58 फीसदी था।

ग्वालियर संभाग से अकेले जीतना चाहते हैं सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 2014 के चुनाव में एक प्रतिष्ठापूर्ण बात जुड़ी थी और वो यह कि मोदी लहर के बावजूद वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। कांग्रेस में उन्हे इसके कारण काफी महत्व मिला। इस बार ऐसा नहीं है। सूत्रों का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार ग्वालियर संभाग में अकेले और सबसे बड़े रिकॉर्ड के साथ चुनाव जीतना चाहते हैं। यही कारण रहा कि उन्होंने ग्वालियर एवं भिंड लोकसभा सीट पर प्रभाव रखने वाले अपने समर्थकों को गुना शिवपुरी में प्रचार के नाम पर बुलवा लिया जबकि गुना शिवपुरी में उनकी कोई उपयोगिता ही नहीं थी। बता दें कि ग्वालियर से दिग्विजय सिंह ने अशोक सिंह को टिकट दिलवाया है जबकि भिंड से देवाशीष जरारिया को। चौंकाने वाली बात तो यह है कि मुरैना में सिंधिया के सबसे खास अय्यार रामनिवास रावत चुनाव लड़ रहे हैं परंतु सिंधिया ने उन्हे भी उतना सहयोग नहीं किया जितना कि मुरैना में बसपा प्रत्याशी के आ जाने के बाद अनिवार्य हो गया था। 

कांग्रेस को लावारिस छोड़ विदेश चले गए

ज्योतिरादित्य सिंधिया को आधे उत्तरप्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। माना जा रहा था कि वो प्रियंका गांधी से ज्यादा परिश्रम करते नजर आएंगे परंतु ऐसा नहीं हुआ। वो पूरे समय अपनी गुना शिवपुरी लोकसभा में ना केवल खुद व्यस्त रहे बल्कि प्रदेश भर के तमाम समर्थक विधायक एवं मंत्रियों को भी व्यस्त बनाए रहे। यह कांग्रेस के लिए हानिकारक साबित होगा। गुना सीट पर मतदान के बाद उम्मीद थी कि वो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए धुंआधार प्रचार करेंगे परंतु ऐसा भी नहीं हुआ। वो विदेश चले गए। 

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