10 जनपथ की दीवारों से टकराकर दम तोड़ रही है कांग्रेस, सबूत देखिए | MY OPINION by Dr AJAY KHEMARIYA

पहला चित्र आसाम के हिमंता बिस्वा शर्मा का है दूसरे चित्र में आंध्र के नए सीएम जगन मोहन रेड्डी जेल से बाहर आ रहे है तीसरे में जगन मोदी से मिल रहे है 175 में से 151 विधानसभा सीटे जीतने के बाद (अब और भी बहुत सारे चित्र आपके जहन में उतरते जाएंगे)। इन चित्रों की अपनी एक कहानी है मोदी को छोड़कर दोनो नेता कभी कट्टर कांग्रेसी थे। हिमंता आसाम के बड़े नेता रहे हैं। वे तरुण गोगोई से नाराज थे। काँग्रेस में लगातार बिगड़ रहे हालातों की जानकारी देने के लिये राहुल गांधी से 2 साल तक मिलने का समय मांगते रहे लेकिन राहुल ने समय नही दिया जब दिया तो 11 मिनिट की मुलाकात में हिमंता बोलते रहे और राहुल अपने विदेशी कुत्ते को बिस्किट खिलाते रहे बगैर आई कॉन्टेक्ट के। हिमंता राहुल के घर से बड़े बेआबरू से होकर निकल आये फिर उन्होंने जो किया सबके सामने है आज वे न केवल आसाम बल्कि पूरे नॉर्ट ईस्ट में मिशन मोदी के हीरो है।

अब जगनमोहन की कहानी सुनिये आंध्र में लगातार दो बार अपनी दम पर जिस जगनमोहन के पिता ने सरकार बनाई उनकी मृत्यु एक हवाई दुर्घटना में होने के बाद जब जगन की माँ और बहन हैदराबाद से दिल्ली आकर सोनिया गांधी से मिलने 10 जनपथ पहुँची तो दोनों को अपमानित होकर 10 जनपथ से बाहर आना पड़ा। आज आंध्र औऱ तेलंगाना दोनो में कांग्रेस का पिंडदान सा हो चुका है। राहुल गांधी और सोनिया 23 मई से पहले उसी आंध्र के चुके हुए नेता चन्द्रबाबू से दो दो बार मिल रहे थे औऱ कांग्रेस वफादार रहे जगनमोहन आंध्र में कांग्रेस की कब्र खोदकर 175 में से 151 सीटे लेकर इतिहास बना रहे थे।

समझा जा सकता है कि जिस गांधी नेहरू खानदान को कांग्रेस की संजीवनी कहा जा रहा है उसका नजरिया कांग्रेस विचार के प्रति किस स्तर तक संजीदा है। सच्चाई यह है कि 1991 के बाद से ही कांग्रेस में नेहरू परिवार का नेतृत्व मौलिकता वाला न होकर महज नामधारी बनकर रह गया है। आप कह सकते है कि इस अवधि में कांग्रेस ने तीन बार दिल्ली में सरकारें बनाई है पर इन सरकारों में वो परिवार कहां था ? ज़िसे लोग नेहरू, इंदिरा, राजीव, संजय के रूप में अखिल भारतीय अधिमान्यता दिया करते थे। 

आज राहुल गांधी जिस तरह से कांग्रेस को चलाना चाहते है उसे देखकर ऐसा लगता है मानो किसी निर्दोष व्यक्ति को भारत की पुलिस मार मार कर उस अपराध की स्वीकारोक्ति करा रही हो जो उसने किया ही नही है। राहुल गांधी का राजनीतिक व्यवहार अक्सर राजनीति में उनकी खांटी अरुचि को ही स्वयंसिद्ध करता रहा है।

राजीव गांधी के जाने के बाद से कांग्रेस सही मायनों में नेतृत्व संकट का शिकार है वह बदलते वक्त के साथ खुद को समायोजित करने में नाकाम रही है इंदिरा जी का नेतृत्व मजबूरी के साथ मजबूती का सबब भी था उनके नेतृत्व में अखिल भारतीय अपील थी आजादी के संघर्ष की तपन थी लेकिन 10 जनपथ सिर्फ विरासत का प्रतीक है और कोई भी विरासत बगैर पुरुषार्थ के दीर्द्धजीवी नही रह सकती है। आज कांग्रेस का संकट भी यही है। जिस पर्सनेलटी कल्ट का कल्चर कांग्रेस को ताकत देता था। आज वही उसकी कमजोरी बन गया है। राहुल गांधी को सही मायनों में आज भी भारत के अवचेतन की कोई समझ नही है। वे कड़ी मेहनत करते है पर ये उनका  स्थाई भाव नही है। राजनीति कोई पार्ट टाइम जॉब नही है। राहुल को इसे अभी भी समझना होगा। 

वे अक्सर विचारधारा की बात करते है संगठन की बात करते है पर वो विचार आखिर है क्या? क्या सिर्फ मोदी और आरएसएस को गालियां देना? यह कांग्रेस की वैचारिकी नही है कहाँ है कांग्रेस का समाजवाद? कहां है कौमी एकता का गुलदस्ता? सच तो यह है कि आज कांग्रेस सिर्फ चुनाव लड़ने का एक प्लेटफॉर्म बनकर रह गई है जो सिर्फ चुनाव में नजर आती है। आलाकमान नामक अवधारणा का अंत हो चुका है वरन जिस राजशेखर रेड्डी ने एकीकृत आंध्रप्रदेश में दो दो बार सरकारें बनाई उसके परिवार के लोगो को 10 जनपथ से बेइज्जत क्यों होना पड़ा? क्या सोच रही होगी ऐसा करते समय ? राजनीतिक तो बिल्कुल नही। 

आज आंध्र औऱ तेलंगाना में कांग्रेस खत्म हो गई जो सत्ता में है वे कभी कांग्रेसी ही हुआ करते थे।आसाम औऱ नॉर्ट ईस्ट में जहां बीजेपी का नामलेवा नही हुआ करता था आज वहाँ मोदी और बीजेपी का डंका बज रहा है। आखिर क्यों हिमंता बिस्वा शर्मा को 10 जनपथ सहेज नही पाया?जेबी पटनायक, गिरिधर गोमांग 1999 तक उड़ीसा के कांग्रेसी सीएम हुआ करते थे आज वहाँ बीजेपी खड़ी है पर कांग्रेस गायब हो गई।

कर्नाटका में एस एम कृष्णा, मार्गेट अल्वा जैसे नेता क्यो बीजेपी के पाले में चले गए? बंगाल में ममता बनर्जी क्या मूलतः कांग्रेसी नही है। जिस यूपी बिहार में कांग्रेस की ताकत सर्वाधिक थी हेमवती नंदन, केसी पन्त, एन डी तिवारी, बनारसी दास, के परिवार किधर है? क्या 1999 के बाद से पार्टी का अखिल भारतीय स्वरूप तेजी के साथ नही सिमटा है? इस सिकुड़न को लेकर कोई मंथन कांग्रेस में ईमानदारी के साथ हुआ है।

हकीकत तो यही है कि गांधी नेहरू परिवार और कांग्रेसियों के बीच सिर्फ तयशुदा सा रिश्ता चल रहा है। राहुल गांधी हो या सोनिया गांधी और अब प्रियंका बाड्रा सभी विरासत की पूंजी से राजनीति चलाना चाहते है हिंदुस्तान की आवाज, उसके बदलते मिजाज के साथ कोई तदात्म्य नजर ही नही आता है। दूसरी तरफ मोदी शाह की जोड़ी राजनीति के बदले हुए व्याकरण को न केवल पढती है बल्कि खुद भी नए व्याकरण को गढ़ रहे है वे लोगो की आकांक्षाओं को दलीय प्रतिनिधित्व में ढाल रहे है परम्परागत तौर तरीकों के स्थान पर नवोन्मेषी अवधारणाओ को जमीन पर उतार रहे है। 

सामाजिक राजनीतिक बदलाबो के साक्षी  औऱ साझीदार बना रहे है भारत के आमोखास को।देवेन्द्र फड़नीस,मनोहर लाल खट्टर,रघुवर दास,त्रिवेंद्र रावत,बिप्लव देव ,सर्वानन्द सोनोबाल, योगी आदित्यनाथ,जयराम ठाकुर,हो या कैलास विजयवर्गीय, मुकुल राय, राम माधव,8बीड़ी शर्मा,राकेश सिंह,कैप्टन अभिमन्यु,थावरचंद गेहलोत चौधरी बीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत,राज्यवर्द्धन सिंह राठौर, मनोज तिवारी,हर्षवर्धन,श्रीकांत शर्मा, जैसे तमाम नेताओं को बीजेपी आलाकमान ने स्थापित किया है हरियाणा, त्रिपुरा,बंगाल,अरुणाचल,मणिपुर, से लेकर बिहार,यूपी ,तक बीजेपी ने राजनीतिक रूप से मजबूत उन सभी चेहरों को अपने यहाँ जगह औऱ पहचान दी जो समाज मे अपनी पहचान रखते थे उनका पार्टी हित में उपयोग सुनिश्चित किया।परिणाम आज बीजेपी दुबारा सत्ता में है और कांग्रेस इतिहास की दूसरी बड़ी पराजय के बाद कहां खड़ी है?आज भी अगर ध्यान से देखे तो बंगाल,महाराष्ट्र, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक,यूपी, त्रिपुरा,आसाम,कश्मीर,उत्तराखण्ड, जैसे राज्यो में जो चेहरे कांग्रेस के सामने खड़े है वे कभी कांग्रेसी ही हुआ करते थे।जिसे आलाकमान कहते है उस 10 जनपथ की नीतियों राजनीतिक समझ के आभाव में वे कांग्रेस से दूर हुए औऱ आज कांग्रेस के अस्तित्व पर चोट कर रहे हैं। इसके बाबजूद पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के सामने याचक की मुद्रा में खड़ी है। 

आखिर क्या किया है राहुल ने काँग्रेस के पुनर्जीवन के लिये? सेवादल, यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, विचार प्रकोष्ठ, किसान कांग्रेस, इंटक, महिला कांग्रेस, जैसे सब जमीनी अनुषांगिक संगठन आज खत्म हो गए। युवक कांग्रेस के संगठन को एक ईसाई मूल के नोकरशाह लिंगदोह के कहने पर राहुल गांधी ने ही खत्म किया है लोकसभा, विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव कराकर।एनएसयूआई का कोई अता पता नही है कभी इन संगठनों से विधानसभा लोकसभा के टिकट के कोटे फिक्स थे लेकिन अब राहुल खुद भोपाल में घोषणा करते है कि टिकट सिर्फ कांग्रेसी को मिलेगी पैराशूट से आने वालों को नही लेकिन भोपाल में सार्वजनिक रूप से की गई घोषणा का भोपाल में ही अमल नही हो पाया।राहुल असल मे दो दुनियां में रहने वाले शख्स है एक कांग्रेस की विरासत और दूसरी अपनी मूल दुनियां जहां राजनीति का कोई कॉलम ही नही है। 

यही कारण है कि उनके निर्णयों के पीछे क्रियान्वयन की इच्छाशक्ति, निरंतरता कभी नही देखी गई।उनकी मंडली एनजीओ टाइप सलाहकारों की है जो दिमाग से 100 प्रतिशत कम्युनिस्ट है इन्ही सलाहकारों ने राहुल को जेएनयू में जाकर टुकड़े,टुकड़े गैंग की वकालत में खड़ा किया जो अंततः अफजल औऱ याकूब मेनन की फांसी को रुकवाने के हिमायती थे।देश की जनता ने राहुल के इस आचरण को कतई पसन्द नही किया।आप बीजेपी खासकर मोदी  के राष्ट्रवाद से जेएनयू जाकर नही लड़ सकते है। राहुल वायनाड जाकर लड़ते है जहां मुस्लिम ,ईसाई वोटर निर्णायक है मुस्लिम लीग के झंडो में कांग्रेस का तिरंगा छिपा दिया जाता है और दूसरी तरफ आप मंदिर, मन्दिर,भागते है खुद को दत्तात्रेय ब्राह्मण बताते है और सोमनाथ के मंदिर में जाकर आप अपनी उपस्थिति  गैर हिन्दू के रूप करते है।यह भृम यह भटकाव,यह अदूरदर्शिता  कांग्रेस आलाकमान की कभी नही रही है।

मोदी और अमित शाह की बीजेपी से लड़ने के लिये राहुल गांधी जैसा आलाकमान सक्षम नही है इसे स्वीकार करने में ही कांग्रेस की भलाई है।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !