पदमी/ मंडला। जिला मुख्यालय के समीपस्थ ग्राम पदमी में एक वृद्धा श्रीमती पूना बाई ठाकुर (Poona Bai Thakur) द्वारा शिक्षा के लिए अपने पति की स्मृति में 100000/-एक लाख रुपये दान (Donation) दिया गया। उक्त राशि को उनके द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर (Saraswati Shishu Mandir) पदमी के प्रधानाचार्य श्री महासिंह ठाकुर ( Principal Shri Mahasingh Thakur) को नगद प्रदान किया गया।
इस राशि से भवन निर्माण कराया जाएगा। विद्यालय की स्थापना और नींव रखने में इनके द्वारा उल्लेखनीय योगदान दिया गया। एक केवल साक्षर महिला का शिक्षा के प्रति रूचि और सोच ने समाज और बुद्धिजीवी तबके को सोचने पर मजबूर किया की समझ को फिजूलखर्ची कम करके शिक्षा और स्वास्थ्य (Education and health) पर दान करना चाहिए।
सरस्वती शिशु मंदिर का इतिहास
1952 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रेरणा से शिक्षा क्षेत्र को जीवन-साधना समझकर कुछ निष्ठावान लोग इस कार्य में जुट गए। उन्होने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए “सरस्वती शिशु मंदिर” की आधारशिला गोरखपुर में में पक्की बाग़ में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में रखी। इससे पूर्व कुरुक्षेत्र में 'गीता विद्यालय' की स्थापना 1946 में हो चुकी थी। मन की आस्था, हृदय का विकास, निश्चय की अडिगता तथा कल्पित स्वप्न को मन में लेकर कार्यकर्ताओं के साधना, तपस्या, परिश्रम व संबल के परिणामस्वरुप स्थान-स्थान पर “सरस्वती शिशु मंदिर” स्थापित होने लगे। इसी प्रयत्न ने 1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ। सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं।