भोपाल। भाजपा के दिग्गज नेता 5 बार के सांसद, बुंदेलखंड में जातिवाद की राजनीति के प्रमुख चेहरा रामकृष्ण कुसमरिया की स्थिति 'आसमान से गिरे खजूर में अटके' जैसी हो गई है। शिवराज सिंह चौहान से नाराज होकर वो टिकट की प्रत्याशा में कांग्रेस में आए थे, लेकिन कांग्रेस ने भी उन्हे टिकट नहीं दिया।
विधानसभा चुनाव में रामकृष्ण कुसमरिया ने भाजपा से टिकट मांगा था परंतु नहीं मिला। गुस्साए रामकृष्ण कुसमरिया ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया। वो दमोह एवं पथरिया दोनों सीटों से चुनाव मैदान में उतरे। उनकी बगावत ने असर दिखाया और दोनों सीटों पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा परंतु रामकृष्ण कुसमरिया भी जीत नहीं पाए। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उन्हे उम्मीद थी कि अमित शाह की तरफ से सकारात्मक संकेत मिलेंगे परंतु फार्मूला 75 के नाम पर रामकृष्ण कुसमरिया को अपनी दाल भी गलती नजर नहीं आई।
रामकृष्ण कुसमरिया ने समय रहते कांग्रेस ज्वाइन करना उचित समझा। उन्होंने कमलनाथ से संपर्क किया। सीएम कमलनाथ ने भी उनका धूमधाम से स्वागत किया परंतु इसके बाद बात खत्म हो गई। कांग्रेस दावेदारों की पहली लिस्ट में रामकृष्ण कुसमरिया का नाम दर्ज किया गया परंतु रामकृष्ण कुसमरिया को शायद पता नहीं था कि कांग्रेस में टिकट दिल्ली में फाइनल होते हैं। भोपाल में बनने वाली लिस्टों का कोई महत्व नहीं होता। कांग्रेस ने उन्हे टिकट नहीं दिया। अब रामकृष्ण कुसमरिया की स्थिति यह है कि वो बगावत भी नहीं कर सकते और चुप रहना उनकी आदत नहीं। देखते हैं रामकृष्ण कुसमरिया की राजनीति का अंत कहां जाकर होता है।