कन्हैयालाल लक्षकार। देश में लोकतंत्र का पावन पर्व लोकसभा आम चुनाव का दौर जारी है। आम चुनाव में विभिन्न प्रमुख जनीतिक दलों ने लोक लुभावन वादे किये है पर पुरानी पेंशन पर सभी ने चुप्पी साध रखी है। इससे कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना बलवती हुई है व अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा है।
विडम्बना है 2004-05 में तात्कालीन केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन बंद करके अंशदायी पेंशन योजना लागू की थी, इससे कर्मचारियों के वेतन से दस फीसदी राशि काटना प्रारंभ किया गया। राज्य सरकारों ने भी इसका अनुसरण किया है; इतना ही अंशदान सरकारों को मिलाना होता है जो लंबी अवधि तक नहीं मिलाया जाता है इसकी सुनवाई का वाजिब फोरम भी नहीं है। इस राशि के व्यवस्थित लेखे जोखे से कर्मचारियों को अनभिज्ञ रखा जाता है। इस राशि का निवेश कर्मचारियों की सहमति के बगैर बालात् कब कहाँ और कैसे किया जाता यह सरकार की मर्जी से शेयर मार्केट में बाजार के उतार चढ़ाव के अधीन होता है। मार्केट में मंदी का खामियाजा प्रत्यक्ष रूप से कर्मचारियों को भुगतना पड़ेगा।
अशदायी पेंशन में कर्मचारियों को 35-40 वर्ष सेवाकाल पूर्ण होने पर एकमुश्त भुगतान का प्रावधान है। इससे आगे का जीवन घुप्प अंधेरे में बिताना होगा। पुरानी पेंशन योजना में सेवाकाल पूर्ण होने पर शेष जीवन में मासिक पेंशन मिलने से बुढ़ापे का सहारा था जिसे सरकार ने छीन लिया। माननीयों ने अपने लिए तो पेंशन योजना लागू कर ली और वर्षों के सेवाकाल के बाद कर्मचारियों को अंधेरे में धकेलना न्यायसंगत नहीं है। यदि अंशदायी पेंशन योजना लाभकारी है तो माननीय इस दायरे में शामिल क्यो नहीं होते? दुर्भाग्य है कि राष्ट्रव्यापी आंदोलनों के बाद भी किसी राजनीतिक दल ने इसे तवज्जों नहीं दी। अब एक मात्र आशा की किरण है, महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ जी कोविंद कर्मचारियों को न्याय दिलावे।
लेखक: कन्हैयालाल लक्षकार, मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष हैं।
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