फंसे कर्जे,सरकार और कानून | EDITORIAL by Rakesh Dubey

सर्वोच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र के बिजली उत्पादकों और कुछ कपड़ा, चीनी और नौवहन कंपनियों द्वारा दायर याचिका पर निर्णय करते हुए  भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 12 फरवरी को जारी परिपत्र को खारिज कर दिया है | इस परिपत्र में बैंकों से कहा गया था कि वे एक दिन के डिफॉल्ट को भी चिह्नित करें और ऐसे डिफॉल्टरों के प्रति ऋणशोधन की प्रक्रिया शुरू करें।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35 एए के आलोक में आरबीआई को ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) को संदर्भित करते हुए ऐसा परिपत्र नहीं जारी करना चाहिए था। अदालत ने यह भी कहा कि आईबीसी के अधीन दिए जाने वाले संदर्भ मामला विशेष के आधार पर दिए जाने चाहिए और अधिनियम के तहत इन्हें केंद्र सरकार की मंजूरी प्राप्त होनी चाहिए। अदालत ने आईबीसी की संवैधानिक वैधता की बात नहीं की जो राहत की बात है क्योंकि देश को आईबीसी की आवश्यकता है, जिससे ऋण व्यवस्था समुचित ढंग से काम कर सके।

यह याचिका उस समय दायर की गई थी जब आरबीआई द्वारा ऋण निस्तारण के लिए तय 180 दिन की समय सीमा समाप्त ही हुई थी। याचियों का कहना था कि आरबीआई सबको एक ही तराजू से तौल रहा है और इस दौरान उन अलग-अलग कारकों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है जो इन कंपनियों की ऋण चुकता करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। कंपनियों ने यह दलील भी दी कि वे वैकल्पिक निस्तारण योजना को लेकर कर्ज देने वालों से चर्चा कर रही हैं। 12 फरवरी के परिपत्र के कारण कुल 3.8 लाख करोड़ रुपये मूल्य का अनुमानित कर्ज प्रभावित हुआ जो ७०  बड़े कर्जदारों के पास था। इसमें से २  लाख करोड़ रुपये मूल्य का कर्ज अकेले बिजली क्षेत्र का था।  वैसे भी राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां बकाये की समस्या से जूझ रही हैं। केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक यह राशि १६००० करोड़ रुपये है। यह मामला वोट बैंक राजनीति और उपभोक्ताओं, किसानों और ग्रामीण परिवारों के लिए बिजली दरें न बढ़ाने से जुड़ा है। 

 चूंकि ऋण निस्तारण के तमाम अन्य तरीके प्राय: विफल रहे हैं और अदालत का यह निर्णय ऋण निस्तारण के पारदर्शी और उत्कृष्ट तरीके को बैंकिंग नियामक की निगरानी से दूर करता है। एक अर्थ यह भी निकलता है कि तनावग्रस्त खातों के पुनर्गठन के लिए आरबीआई द्वारा प्रायोजित कोई योजना नहीं है। हालांकि अदालत ने कहा कि बैंकों के पास डिफॉल्ट करने वाले कर्जदारों को आईबीसी के पास भेजने का विकल्प रहेगा। ऐसा तभी हो सकेगा  जब निस्तारण योजना विफल हो जाए। अब बैंकों के ऊपर निस्तारण प्रक्रिया को तय अवधि में खत्म करने का कोई दबाव नहीं होगा। यह चिंतित करने वाली बात है क्योंकि वर्षों तक फंसे कर्ज को चिह्नित करने में हुई देरी की वजह से भी करीब १० लाख करोड़ रुपये का फंसा कर्ज एकत्रित हो गया है। दिवालिया अदालत में ले जाए जाने की आशंका कई कर्जदारों की इस मानसिकता को बदलने में सहायक होती है कि बड़े कर्ज का पुनर्भुगतान बैंक की समस्या है।इस निर्णय के आलोक और फंसे हुए क्र्जोंन के मामले में सरकार को शीघ्र कुछ करना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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