हमारे नागरिक अधिकारों पर संकट | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
हाल ही में हुए मतदान को लेकर उँगलियाँ उठ रही हैं। मतदान हो या अन्य कोई नागरिक अधिकार उसका संरक्षण होना चाहिए। भारत के संविधान की मूल भावना तो यही है। नागरिक अधिकार व अभिव्यक्ति की आजादी के चलते जालियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। इसके मूल में नागरिक अधिकार एवं अभिव्यक्ति की आजादी व असहमति का हक ही मुख्य मुद्दा कहा जा सकता है जिसकी रक्षा के लिए लोगों ने कुर्बानियां दीं।आज देश फिर उसी मुहाने पर खड़ा है नागरिक अधिकारों की सीमा को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं । पक्ष और प्रतिपक्ष की इस विषय पर अवधारणा और परिभाषा अलग-अलग है। आने वाले समय में देश को इस संकट का सामना करना होगा।

आज से १००  साल पहले महात्मा गांधी थे और उनके नेतृत्व में  नागरिक अधिकारों को कुचलने वाले रॉलेट एक्ट का कांग्रेस ने विरोध किया था।  अब नतो ऐसे नेता है और न वैसे आन्दोलन  । अब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री खुले आम कह रहे है की देश का चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के हाथों में खेल रहा है । कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोपों का खेल खेल रही है । मतदान एक महत्वपूर्ण नागरिक अधिकार है, इसके हाइजेक करने की बात कहीं से भी प्रजातांत्रिक नहीं है । इस हईजेक का माध्यम मशीन यानि ई वी एम्  को बताया जा रहा है । इसका विस्तार राष्ट्र द्रोह तक होता है ।

कन्हैया कुमार गिरफ्तारी के बाद इस धारा को लेकर एक बार फिर देश में फिर एक बार नागरिक अधिकारों पर  बहस उठी थी । दरअसल  मौजूदा धारा १२४  ए में प्रावधान इतने अस्पष्ट हैं कि इनकी आड़ लेकर लोगों को आसानी से देशद्रोह का आरोपी बनाया जा सकता है। आजादी के बाद भी  इस धारा के तहत बहुत से लोगों को इन्हीं अस्पष्ट प्रावधानों की आड़ में गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, नेता, आंदोलनकारी, पत्रकार, अध्यापक, छात्र छत्तीसगढ़ में तो सबसे ज्यादा प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों के निरीह व निर्दोष आदिवासी शामिल हैं। ये लोग बरसों जेल में सड़ते रहते हैं और गरीब आदिवासियों की तो कोई सुनवाई भी नहीं होती।  सवाल ये है कि इन गतिविधियों से पैदा होने वाले खतरे का आंकलन कैसे किया जाय। हालांकि १९६२  में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला धारा १२४  ए के दायरे को लेकर कई बातें साफ कर चुका है, लेकिन आज भी इस धारा को लेकर अंग्रेजों की राह का ही अनुसरण किया जा रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस धारा को जारी रखने का उद्देश्य सरकार के खिलाफ बोलने वालों को सबक सिखाना ही है जो अंग्रेजों से लेकर आज तक बदस्तूर जारी है। 

जो धाराएं संविधान की उस भावना के खिलाफ भी है, जिसके तहत लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को अपनी असहमति जताने का हक हासिल है, का पोषण होना चाहिए । महज बाजारीकरण के ही सारे रास्ते खोल देने से ही नहीं, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों, असहमति का हक व अभिव्यक्ति की आजादी के संरक्षण से ही नए भारत में स्वस्थ लोकतंत्र की राह मजबूत हो सकेगी।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!