भोपाल शर्मसार: कोख में मारी जा रहीं हैं बेटियां, 1000 लड़कों पर मात्र 884 | BHOPAL NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। मध्यप्रदेश देश का वो प्रदेश है जिसने सारे देश को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बेटी बचाओ अभियान के विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च किया परंतु राजधानी भोपाल में उसका कोई असर नजर नहीं आया। यह भोपाल को शर्मसार करने वाली खबर है। यहां गर्भ में महिला भ्रूण की हत्याएं की जा रहीं हैं। प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की जन्मदर मात्र 884 है जबकि डिंडौरी जैसे आदिवासी इलाके में यह 1006 है। 

मप्र स्वास्थ्य विभाग के हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम (एचएमआईएस) बुलेटिन के अनुसार भोपाल में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 884 है। यह आंकड़ा अप्रैल 2018 से फरवरी 2019 के बीच पैदा होने वाले शिशुओं का है। बड़ी बात यह है कि महानगरों व बड़े जिलों की तुलना में आदिवासी जिलों में बेटियां ज्यादा पैदा हो रही हैं। डिंडौरी में सबसे ज्यादा 1006 बेटियां प्रति हजार बेटों पर पैदा हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कम लिंगानुपात के पीछे कन्या भ्रूण हत्या से इंकार नहीं किया जा सकता। 

भोपाल में पिछले चार साल (2015-16 से) के भीतर बेटियों की संख्या में 49 अंकों की कमी आई है। उधर, इंदौर में सुधार हो रहा है। 2011 की जनगणना में भी आदिवासी जिलों में लिंगानुपात बेहतर था। बालाघाट, मंडला, डिंडोरी व अलीराजपुर में लिंगानुपात 1000 से ज्यादा था। सबसे कम भिंड में 837 व मुरैना में 840 था। अब इन दोनों जिलों में प्रति हजार लड़कों पर 900 से ज्यादा लड़कियां जन्म ले रही हैं। एचएमआईएस बुलेटिन के अनुसार मप्र में प्रति एक हजार बेटों पर 936 बेटियां पैदा हो रही हैं।

भोपाल में क्यों घट रही है बेटियों की संख्या

प्रदेश में बेटियों की कम होती संख्या को चिंताजनक मानते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रूण लिंग परीक्षण रोकने के लिए स्टिंग ऑपरेशन कराने की बात कही थी। यह काम स्वास्थ्य विभाग को करना था, लेकिन स्टिंग ऑपरेशन नहीं किए जा रहे हैं। सोनोग्राफी केन्द्रों की कड़ाई से जांच भी नहीं की जा रही है। इस वजह से भू्रण लिंग परीक्षण की आशंका बढ़ जाती है।

बेटों का जन्म ज्यादा होना चाहिए: डॉ. वीणा सिन्हा

गर्भधारण पूर्व व प्रसव पूर्व भ्रूण लिंग परीक्षण निदान तकनीक एक्ट (पीसी एंड पीएनडीटी) की जानकार व स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त संचालक डॉ. वीणा सिन्हा का कहना है कि प्राकृतिक तौर पर बेटों का जन्म ज्यादा होना चाहिए। 0 से 5 पांच साल की उम्र तक बेटों की मौत ज्यादा होती है। इससे बेटे-बेटी की संख्या बराबर हो जाती है। रूस समेत जिन देशों में लिंग चयन नहीं होता, वहां बेटियों की संख्या ज्यादा है। मप्र में आदिवासियों में लड़के-लड़की में भेदभाव नहीं है, इसलिए वहां पर लिंगानुपात ज्यादा है। उनका कहना है कि पढ़े-लिखे लोग लिंग चयन ज्यादा करते हैं, जिससे बड़े शहरों में लिंगानुपात कम है।

आदिवासी जिलों की स्थिति बेहतर

एचएमआईएस 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासी जिलों में बेटियों का जन्म बड़े जिलों की तुलना में ज्यादा हुआ। मसलन प्रति हजार लड़कों पर बालाघाट में 969, सिवनी में 983, मंडला में 968, उमरिया में 967, सिंगरौली में 962 व नीमच में 997 बेटियों ने जन्म लिया। वहीं ज्यादा पढ़े-लिखे जिलों की हालत खराब है।

इतना कम लिंगानुपात चिंताजनक

बड़े शहरों में सोनोग्राफी सेंटर ज्यादा हैं। इनकी नियमित जांच नहीं की जाती। पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। भोपाल में इतना कम शिशु लिंगानुपात चिंताजनक है। डॉक्टरों की विशेष टीम बनाकर इसकी जांच कराई जानी चाहिए।
अमूल्य निधि, हेल्थ एक्टिविस्ट, जन स्वास्थ्य अधिकार मंच
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