सज्जन वर्मा ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला | MP NEWS

Bhopal Samachar
इंदौर। मध्यप्रदेश सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दिग्विजय और कमलनाथ के बीच हुई हंसी-ठिठोली की खबर मीडिया में लीक हो जाने के बाद सज्जन सिंह वर्मा ने इसे गंभीर चूक माना है। उन्होंने आरोप लगाया है कि इंदौर लोकसभा सीट को हमारी पार्टी और नेताओं ने कभी सीरियसली नहीं लिया। उन्होंने कहा कि इस बार हम इंदौर सीट जीतने की स्थिति में हैं, लेकिन हाल में हुई घटना नेताओं का सीरियस नहीं होने का उदाहरण है। इंदाैर लोकसभा सीट से सांसद सुमित्रा महाजन 8 बार जीत दर्ज कर चुकी हैं।

कमलनाथ से अपील: दिग्विजय सिंह की सलाह ना मानें

वर्मा ने कहा कि मैं अपनी ही पार्टी के सीनियर नेताओं पर आरोप लगाता हूं कि हमारी पार्टी ने इंदौर लोकसभा चुनाव को कभी सीरियसली नहीं लिया। अभी जो दो तीन दिन में घटनाक्रम हुए, वह इस बात के संकेत हैं। मुख्यमंत्रीजी काफी वरिष्ठ और गंभीर राजनेता हैं, जिन्होंने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। हम उनसे आशा करते हैं कि किसी और की सलाह माने बिना इंदौर का निर्णय विश्वसनीय साथियों से पूछकर करना चाहिए। भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन द्वारा सुमित्रा महाजन को फिर से टिकट देने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद हमारे जीतने की स्थिति और मजबूत होती है। क्योंकि सत्तनजी एक वरिष्ठ और लोकप्रिय नेता हैं। यदि वे मैदान में उतरते हैं तो जितने वोट वो काटेंगे उससे हमें ही फायदा होना है।

दिग्विजय के स्पीकर पर बात करने से गलत संदेश गया

वर्मा ने कहा कि एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता के नाते दिग्विजय सिंह को ऐसा नहीं करना था। ऐसा करने से संदेश गलत जाता है। वैसे भी लोकसभा चुनाव के टिकट के लिए नियम और गाइडलाइन है। सभी वरिष्ठ नेताओं के समन्वय से टिकट तय होता है। हालांकि इंदौर के टिकट को नेताओं ने सीरियस लिया ही नहीं।

सत्तन की खिलाफत से परिस्थितियां कांग्रेस के पक्ष में 

अब परिस्थिति काफी बदली हुई है। यहां से तीन मंत्री हैं। कांग्रेस की सरकार है। इससे अच्छा मौका नहीं है लोकसभा चुनाव जीतने का। लोकसभा स्पीकर और सांसद सुमित्रा महाजन का विरोध सत्यनारायण सत्तन कर रहे हैं। हजारों घर तक उनकी पहुंच है। ऐसे में सभी को एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहिए। दूसरे अन्य नेताओं ने भी कहा कि चुनाव सामने हैं। कार्यकर्ता, नेताओं का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है न कि उन्हें कमजोर करने की।

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