अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता भंग क्यों नहीं कर देते | EDITORIAL

उपदेश अवस्थी। दीपावली पर आतिशबाजी की जिद बच्चे पाले तो समझ आता है परंतु इस बार तो शक्तिशाली नेताओं ने पाल ली। पूजा का मुहूर्त शाम 6 से 8 बजे तक का था। सुप्रीम कोर्ट ने रात 8 से 10 बजे का समय आतिशबाजी के लिए निर्धारित कर दिया था। फिर भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की गई। यदि सरकारी कैमरों में रिकॉर्डिंग हुई हो तो प्रमाणित करने की जरूरत नहीं कि जान बूझकर रात 10 बजे के बाद ही आतिशबाजी की गई। रात 10 बजे के बाद अचानक पटाखों की आवाज गूंजना शुरू हुई और फिर वो तेज और तेज होती चली गईं।

बताने की जरूरत नहीं कि यह स​बकुछ उन लोगों ने किया जिन्हे गिरफ्तारी का खौफ नहीं था। जो सत्ताधारी दल से आते हैं। पुलिस ने भी कोई कार्रवाई नहीं की। यहां तक कि रात 10 बजे से 11 बजे तक पुलिस ऐसे किसी स्थान पर गश्त पर नहीं थी जहां आतिशबाजी की आवाज आ रही थी। 

भारत में न्यायालयों का सम्मान होता है। उन्हे संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। वो संवैधानिक संस्थान हैं। हम उन्हे न्याय का मंदिर कहते हैं। वहां गुनहगारों को भी अपील का अवसर मिलता है। यदि किसी को लगता था कि दीपावली के मामले में कोर्ट का निर्णय गलत है तो अपील कर सकते थे। दलील पेश कर सकते थे। जो कुछ हुआ वो तो तानाशाही ही है। मैं सिर्फ यह नहीं समझ पाया कि सुप्रीम कोर्ट के अपमान की परंपरा डालकर क्या हासिल हुआ। आज आतिशबाजी के लिए, कल किसी और बात के लिए। आज भाजपा तो कल दूसरी सत्ताधारी पार्टी। 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसी को नीचा दिखाने या अपने फायदे के लिए तो नहीं था। प्रदूषण को लेकर याचिका लगी थी। कोर्ट क्या, कोई भी व्यक्ति प्रदूषण को मंजूरी नहीं दे सकता था। पूजा के बाद आतिशबाजी चलाते। इस दौरान घड़ी में 10 बज भी जाते तो कोई बात नहीं। लेकिन जान बूझकर 10 बजे के बाद ही आतिशबाजी करना। यह समझ नहीं आया। इससे तो अच्छा है एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता ही खत्म कर दीजिए। कम से कम स्पष्ट तो हो जाएगा कि भारत में संविधान का शासन नहीं बचा। 
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !