दर्शन कीजिए वह स्थान जहां से भगवान विष्णु ने नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ की थी / religious


विवेक पाराशर। मध्यप्रदेश में उज्जैन और ओंकारेश्वर के ज्योर्तिलिंग महत्व और मंदिर को हर कोई जानता है पर हम ऐसे शिव लिंग के बारे में बता रहे हैं जिसका उल्लेख नर्मदा पुराण हैं, जिसे देवपथ शिव मंदिर कहते हैं। पौराणिक मान्यता अनुसार देवताओं ने स्वयं मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया है। यहां से भगवान विष्णु ने नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ कर यहीं समापन हुआ। मंदिर रुद्रयन्त्र पर स्थापित हैं। यह मंदिर बड़वानी के नर्मदा तट के समीप धार जिले के बोधवाड़ा में है।

पुण्य सलिला मां नर्मदा की परिक्रमा का महत्व यू ही नहीं है, स्वयं देवताओं ने मां नर्मदा की परिक्रमा की थी। तब से यह परिक्रमा का पावन पुण्य समूचे विश्व में विख्यात है। नर्मदा तट पर स्थित अतिप्राचीन प्राचीन देवपथ महादेव मंदिर इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसी मंदिर से सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु ने देवताओं के साथ शिवलिंग की पूजा अर्चना कर नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ की और समापन भी यही किया था।

पुराणों के अनुसार इस देवपथ मंदिर के शिवलिंग की स्थापना भी देवताओं ने ही की थी। बड़वानी शहर से सटे कसरावद तट के उत्तरी किनारे पर ग्राम बोधवाड़ा जिला धार में स्थित इस पौराणिक व धार्मिक महत्व के देवपथ महादेव मंदिर का वास्तु भी समूचे भारत मे संभवत: अद्वितीय है। यह मंदिर रुद्र महायंत्र के रूप में निर्मित है, जबकि शिवलिंग के ऊपर गुंबद का आकार श्री यंत्र पर बना है। इस मंदिर के विषय में रोचक तथ्य यह भी किवदंती के रूप यह कहा जाता है कि वर्तमान में मौजूद जलाधारी से ऊपर की और दिखने वाले शिवलिंग का लगभग 11 फिट लंबा हिस्सा भूमिगत है। इस तरह यह 12 फीट शिवलिंग की ऊंचाई है।

इस मंदिर में यू तो क्षेत्रीय श्रद्धालुओं का आना- जाना लगा रहा रहता है, किन्तु क्षेत्र के बाहर लोग इस देवपथ शिव मंदिर की पौराणिकता से अंजान हैं। महाशिवरात्रि पर्व पर इस अदभुत चमत्कारिक महादेव मंदिर में पूजन व अभिषेक का सर्वाधिक महत्व है, कालसर्प योग का निवारण भी यहां होता है। गन्ने के रस से इस शिवलिंग पर अभिषेक करने पर शिव जी जल्दी प्रसन्न होते हैं और आर्थिक समस्या से जल्द छुटकारा मिलता है।

शिवपुराण और नर्मदा पुराण में इस देवपथ महादेव मंदिर के महत्व को स्पष्ट समझाया गया है। सर्व मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला यह शिवतीर्थ ज्योतिर्लिंगों के समान है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर 900 साल प्राचीन है, जिसका निर्माण 12 वीं शताब्दी में किया जाना दर्शाया गया है। जबकि कालांतर में धार के राजा के द्वारा 18 वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। समय के साथ-साथ मंदिर का बाहरी हिस्सा क्षरण और नर्मदा की बाढ़ के प्रभाव मंदिर के रुद्र यंत्र पर दिखाई पड़ता है।

देवपथ मंदिर अर्थात देवताओं के रास्ते का सूचक इस मंदिर के बाहर रूद्रयंत्र जिसके 36 कोण हैं। शास्त्रों और वेदों के अनुसार एक-एक कोण मे देवता विद्यमान है साथ ही चारों ओर द्वारपाल भी विराजित है, प्रत्येक कोण एक-एक करके 36 दिनों मे खुलते हैं।

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