MPPSC को सुप्रीम कोर्ट का लास्ट चांस: असिस्टेंट प्रोफेसरों भर्ती विवाद | mp news

भोपाल। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा लंबे समय बाद की जा रही असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती में समस्याएं खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इस पूरे मामले में विभाग द्वारा समस्याओं का समाधान करने के बजाय इसे उलझाने का प्रयास किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में बैकलॉग के पदों के मामले में जारी नोटिस का जवाब उच्च शिक्षा विभाग एवं मप्र लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) द्वारा पेश नहीं किया जा सका। सुप्रीम कोर्ट ने विभाग को जवाब देने का एक अंतिम मौका दिया है।

जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में नोटिस जारी किया था, इसकी कॉपी उच्च शिक्षा विभाग को एक महीने पूर्व प्राप्त हो चुकी है। इसके कारण उच्च शिक्षा विभाग एवं एमपीपीएससी के अधिकृत अधिवक्ताओं ने नोटिस प्राप्त होने के संबंध में अपना वकालतनामा कोर्ट को लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान केवल यह पाया कि केवल वकालतनामा जमा किया गया है और कोई जवाब नहीं आया है। उल्लेखनीय है कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा हाईकोर्ट में भी कोई जवाब नहीं दिया गया था। इन तथ्यों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जवाब प्रस्तुत करने के लिए एक अवसर और विभाग को प्रदान किया है। सुप्रीम कोर्ट में आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा लगाई याचिका में पैरवी आदर्श त्रिपाठी एवं अन्य वकीलों द्वारा की जा रही है।

विभाग क्यों नहीं दे रहा जानकारी
एससी/एसटी एक्ट-1994 की धारा 3 व 4 में स्पष्ट उल्लेख है कि अंतिम विज्ञापन में जो पद नहीं भरे गए थे, वही बैकलॉग कहलाएंगे। जिसको आगामी पांच साल में या दो बार में बैकलॉग की भर्ती करना आवश्यक है। जबकि, उच्च शिक्षा विभाग बैकलॉग की भर्ती पांच बार एवं 27 साल में करना चाह रहा है, जो पूरी तरह नियम विरुद्घ है। विभाग स्वीकृत पदों के आधार पर बैकलॉग के पदों की गणना कर रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व आदेशों में यह स्पष्ट कर दिया है कि अंतिम विज्ञापन में एससी/एसटी के जो पद नहीं भरे गए थे, उतने ही पद भरे जाएं। विभाग द्वारा वर्ष-1990 में जो भर्ती की गई थी, उसमें रसायन शास्त्र, गृह विज्ञान, संस्कृत, मराठी एवं फारसी आदि विषयों में विज्ञापन ही नहीं हुआ है। लेकिन विभाग ने उक्त विषयों में भी नियम विरुद्घ बैकलॉग की गणना कर भर्ती कर ली है। उक्त परिस्थितियों को देखते हुए विभाग अब कोई जवाब देने के बजाय टाल-मटोल कर रहा है।
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