सरकार की ताकत और सी बी आई की औकात ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

हमारा भारत भी गजब है। प्रतिपक्ष सी बी आई के जिन अधिकारियों पर आरोप लगाता था उन्हें सरकार ने रातों-रात जबरिया छुट्टी पर भेज दिया। अब यह बहस जारी है कि सरकार को ऐसा करने का हक था या नहीं। इस मामले में भी फैसला देश का सर्वोच्च न्यायलय करेगा। सच मायने में देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई के भीतर भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया कि अब उसकी बदबू बाहर तक फैल रही थी। इस एजेंसी पर पहले भी उंगलियां उठती रही हैं। सर्वोच्च न्यायलय ने ही इसे पिंजरे का तोता करार दिया था, क्योंकि इसकी स्वायत्तता सरकार के सामने बेबस नजर आती थी। सीबीआई में राजनैतिक हस्तक्षेप की खबरें भी आती रही हैं। इसके बावजूद आम जनता के लिए सीबीआई एक ऐसी इज्जतदार जांच एजेंसी है, जो बड़े और गंभीर मामलों की निष्पक्ष जांच करती है।

जब देश में मनी लांड्रिंग, बैंक से धोखाधड़ी, सांप्रदायिक हिंसा, राजनैतिक षड्यंत्र या फिर हत्या जैसे मामलों में जब पुलिस या अन्य जांच-पड़ताल से इंसाफ मिलना कठिन लगता है, तो लोग सीबीआई जांच की मांग उठाते हैं। इसी सीबीआई में नंबर एक और नंबर दो के अधिकारी एक-दूसरे पर करोड़ों की रिश्वत लेने का आरोप लगते हुए छुट्टी पर भेज दिए गये |किसी संस्था में दो शीर्ष अधिकारियों में आपसी मतभेद हो सकते हैं, एक-दूसरे की कार्यशैली से शिकायतें भी हो सकती हैं, लेकिन अगर ये अधिकारी रिश्वतखोरी का इल्जाम लगा रहे हैं, तो उसे न नजरंदाज किया जा सकता है, न टाला जा सकता है। सरकार के पास विकल्प क्या था ?  सरकार की हैसीयत सी बी आई के सामने और सी बी आई की औकात सरकार के सामने का फैसला सर्वोच्च न्यायलय में हो ही जाएगा। 

इस सबके जद में जो मोईन कुरैशी और उससे जुड़े मामले हैं, उनका क्या ?  ऐसे लोग पैदा कैसे होते हैं ? इस पर भी विचार पक्ष और प्रतिपक्ष को करना चाहिए। ऐसे लोग सत्ता और प्रतिपक्ष से अन्तरंग सम्बन्ध रखते हैं। सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा का सीबीआई में विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से रिश्वत ली, जबकि राकेश अस्थाना भी ऐसे ही आरोप आलोक वर्मा पर लगा रहे हैं।इसमें कई किरदार हैं, जिनमें कोई बैंकर है, कोई उद्योगपति हैं, कोई राजनेता हैं और कोई अधिकारी है। इसकी कड़ियां ईमानदारी से जोड़ी जाएंगी, तभी असल दोषियों तक पहुंचा जा सकेगा। लेकिन ये करेगा कौन, अब तो यही संकट सामने है। जांचकर्ता कोई आसमान से उतरे देवदूत तो हैं नहीं, वे भी इस सिस्टम का हिस्सा हैं और ऐसे में उनकी ईमानदारी कायम कैसे रहे, एक बड़ा सवाल यह भी है।

सबसे महत्वपूर्ण बात जो अब उठ रही है वो सरकार के अधिकार और सी बी आई की औकात की है। मामला देश की सर्वोच्च अदालत में है। जनता के सवाल इन विषयों पर बवाल पैदा कर सकते हैं, जनता सिर्फ वोट प्राप्ति तक ही मालिक नहीं है, उसे यह जानने का हक है कि यह गडबडझाला क्या है? और क्यों है ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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