MPPSC: सहा. प्राध्यापक भर्ती परीक्षा में तो मनमानी की हद हो गई | Khula Khat

डा भूपेन्द्र हरदेनिया। मध्यप्रदेश सरकार में जिस तरह से व्यापमं और मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग कार्य कर रहा है उससे तो यह साबित हो गया है कि यह दोनों ही संस्थाएं भारत की ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी अविश्वसनीय और भ्रष्टतम संस्थाएं हैं। फिलहाल बात करते हैं वर्तमान में चल रही सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2017 की जो कि पूर्णतः संदिग्ध परीक्षा के रूप में अब तक हमारे सामने आई है। खुलेआम सरकार की दादागिरी और पीएससी के भ्रष्टाचार ने तो नाक में ही दम कर दिया है। इस तरह का नजारा शायद ही किसी भर्ती परीक्षा में आपको देखने मिला होगा। 

इतनी विश्वसनीय संस्था जो कि बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों का चयन करती है, इस परीक्षा को देखने के बाद उनकी भी भर्ती प्रमाणिकता संदिग्ध है। मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के द्वारा सहायक प्राध्यापक की भर्ती परीक्षा में सभी आवेदकों की अर्हता का परीक्षण किये बिना ही आवेदकों के द्वारा भरी गई समस्त जानकारियों को सत्य मानते हुए उन्हें परीक्षा में सम्मिलित किया जाना और उन फर्जी लोगों का चयन होना, फर्जी विकलांक प्रमाण पत्र धारियों को चयनित किया जाना, द्वितीय श्रेणी अधिकारी स्तर की परीक्षा को बगैर साक्षात्कार के आयोजित करना, गणित विषय में ओबीसी के इक्कीस पद होने पर भी ओबीसी के केवल उन्नीस लोगों को चयनित करना और शेष दो पदों की कोई जानकारी न देना, आयोग द्वारा इस चयन प्रक्रिया में चयनित सभी परीक्षार्थियों के दस्तावेज सार्वजनिक न करना, फिजिक्स में जीवाजी विश्वविद्यालय के एक  ही विषय के सभी तीस पूर्व छात्रों का चयन, रसायन शास्त्र में सागर विश्वविद्यालय के चौंतीस विद्यार्थियों का इसमें चयन, परीक्षा के उपरान्त स्क्रीन पर कुल प्राप्तांक न दर्शाना, परीक्षा समाप्ति के बाद भी आयोग द्वारा आवेदकों से अपने आवेदन अपडेट कराना (ऐसा शायद विश्व में पहली बार हुआ है), हिन्दी विषय में सामान्य महिला के आरक्षित पदों पर अन्य वर्ग के आवेदकों द्वारा भरा जाना (जिसे हाईकोर्ट ने संज्ञान में लेकर उच्चशिक्षा, लोकसेवा आयोग और चयनित अभ्यार्थियों को नोटिस जारी किए हैं) । चवालीस साल उम्र सीमा बढ़ाकर बाहर के अभ्यार्थियों को मौका देना (जो भाजपा का वोट बैंक बिल्कुल भी नहीं है) और प्रदेश के के उच्चशिक्षितों को नव्बे फीसदी तक बाहर कर देना (जो कि उसका पूर्णरूप वोट बैंक है)। 

उच्चशिक्षा विभाग द्वारा अपनी साईट से अतिथि विद्वानों की सूची हटाना (इसी से उजागर हुआ था असिस्टेंट प्रोफेसर चयन का फर्जीवाड़ा), सविता सहारे जैसे कई ऐसे अभ्यार्थियों का चयन करना नेट सेट पीएच-डी. पास की ही नहीं जो कि अनिवार्य योग्यताएं हैं, अर्थशास्त्र के कम अंक वाले अभ्यार्थी का चयन होना ज्यादा अंकों वाले को बाहर का रास्ता दिखाना और विरोध करने पर उच्चशिक्षा के माफियाओं और दलालों द्वारा धमकी देना, बार-बार मैरिट लिस्ट को संशोधित करके डालना, ये सभी वे बिन्दु हैं जिनसे ये साफ झलकता है कि ये पूरी परीक्षा अन्यायपूर्ण और अनियमितताओं से भरी पूरी है। 

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है। इस तरह के घोटाले और घपले आयोग और व्यापम अपनी पैदाइश से ही कर रहे हैं (अगर अभी इसकी सीबीआई जांच करा दी जाय तो अच्छे अधिकारी जेलों में कचरे ढेर की तरह इकट्ठे होते हुए नजर आएंगे) लेकिन कोई बात नहीं अब इनका पाला उच्चशिक्षितों से पड़ा है जो इस सरकार को सबक सिखाने का माद्दा रखते हैं। यह भी सत्य है की आज के इस कलयुग में सरकारें चुनाव से पहले किसी का भी अहित कर सकती हैं और कर भी रही हैं, लेकिन यह भी परम सत्य है की जनता फिर भी सर्वोपरि है और रहेगी जो चुनाव के समय अपने न्याय से बड़ी से बड़ी सरकारों को अपने अभिमत से अवगत करा देती है, यदि ये भर्ती परीक्षा तत्काल प्रभाव से न रोकी गई तो इस प्रदेश का उच्च शिक्षित अपनी आवाज बुलंद करेगा और जो परिणाम सरकार को भुगतना पडे़गा, उसकी उम्मीद शायद भाजपा सुप्रीमों को भी नहीं होगी। 
आपका, डा भूपेन्द्र हरदेनिया (dr.anil1008@gmail.com)
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