कर्मचारियों में जातिवाद: दिग्विजय सिंह ने शुरू किया था शिवराज सिंह से बढ़ाया | MP NEWS

भोपाल। भारत के सबसे शांत, सहिष्णु और सौहार्द के लिए प्रख्यात मध्यप्रदेश में 02 अप्रैल के बाद 06 सितम्बर को जिस तरह से भारत बंद हुआ एक बार फिर यह चर्चाएं शुरू हो गईं हैं कि आखिर मध्यप्रदेश की जड़ों में मठा किसने डाला था। कुछ वरिष्ठ कर्मचारी बताते हैं कि मध्यप्रदेश में इसकी शुरूआत पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने की थी और सीएम शिवराज सिंह ने इसे पोषित करके जहरीला बना दिया। 

दिग्विजय सिंह ने बोया था कर्मचारियों में जातिवाद का जहरीला पौधा
बता दें कि मध्यप्रदेश में सबसे पहले अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों का संगठन अजाक्स बना। यह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की चुनावी रणनीति का हिस्सा था। वो अनुसूचित जातियों के वोट हासिल करके तीसरी बार सत्ता में आने की प्लानिंग कर रहे थे। जब एक बार जातिवादी कर्मचारी संगठन बना तो फिर पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों ने भी अपना जातिवादी संगठन अपाक्स बना लिया। दोनों को कांग्रेस सरकार ने मान्यता दी। इन दोनों संगठनों की अगुवाई बड़े अफसर को सौंपी गई ताकि पूरे समाज में एक ताकतवर संदेश जाए और जो वोट बीएसपी ने कांग्रेस से छीन लिए थे उन्हे वापस हासिल किया जा सके। लेकिन दिग्विजय सिंह का यह दांव बिफल रहा। जातिवाद की राजनीति मध्यप्रदेश में सफल नहीं हो पाई और उन्हे उमा भारती के हाथों ना केवल शर्मनाक शिकस्त खानी पड़ी बल्कि 10 साल के लिए राजनीति से सन्यास भी लेना पड़ा। 

शिवराज सिंह ने जातिवाद के जहर को और जहरीला बनाया
उम्मीद थी कि दिग्विजय सिंह की रणनीति बिफल हो जाने के बाद भाजपा सरकार कर्मचारियों में जातिवादी संगठनों की मान्यताएं खत्म कर देगी परंतु भाजपा ने ऐसा नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और बाबूलाल गौर ने तो कुछ खास नहीं किया लेकिन सीएम शिवराज सिंह ने इसे सबसे ज्यादा जहरीला बना दिया। चौथी बार कुर्सी और तीसरी बार चुनाव जीतने के लिए सीएम शिवराज सिंह ने भी वही रणनीति का उपयोग किया जो दिग्विजय सिंह ने की थी। आज भी मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के कर्मचारियों के संगठन अजाक्स के मुखिया प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी हैं। 

शिवराज सिंह ने आरक्षण पीड़ित कर्मचारियों को भड़काया
वोट बैंक के लालच में सीएम शिवराज सिंह इस कदर भ्रमित हो गए थे कि उनका ऐजेंडे में अनुसूचित जातियों के अलावा कुछ और था ही नहीं। इसी बीच हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाला प्रमोशन में आरक्षण खत्म कर दिया। यह कानून दिग्विजय सिंह ने बनाया था लेकिन सीएम शिवराज सिंह अचानक इसके संरक्षक बन बैठे। वो बिना बुलाए सपाक्स के सम्मेलन में गए और अनारक्षित कर्मचारियों को भड़काने वाला बयान दिया। इतना ही नहीं शिवराज सिंह ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से अपील कर दी और ऐलान भी किया यदि सुप्रीम कोर्ट में केस नहीं जीत पाए तो विधानसभा में नया कानून बना देंगे परंतु प्रमोशन में आरक्षण जारी रखेंगे। 

इसलिए हुआ सपाक्स का गठन और विस्तार
बस इसी के बाद मध्यप्रदेश में सपाक्स का उदय हुआ। यह सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों का संगठन है। कम शब्दों में कहें तो आरक्षण से पीड़ितों का संगठन है। कहने को तो आईएएस अधिकारी राजीव शर्मा इस संगठन के संरक्षक हैं। पूर्व सूचना आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी इसके मुख्य सूत्रधार हैं। बड़ी संख्या में पूर्व नौकरशाह इससे जुड़े हुए हैं। इस संगठन से लाखों कर्मचारी और उनके परिवार जुड़े हुए हैं परंतु असल में 'सपाक्स' आरक्षण विरोध का एक नाम है। मध्यप्रदेश में वो सभी लोग 'सपाक्स' शब्द का उपयोग करते हैं जो असल में 'सपाक्स' नाम के कर्मचारी संगठन या 'सपाक्स' नाम के सामाजिक संगठन से जुड़े ही नहीं हैं। हालात यह हैं कि 'सपाक्स' संगठन ने भारत बंद का आह्वान नहीं किया था फिर भी इसे 'सपाक्स' का भारत बंद कहा गया। 
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !