नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला किया था कि बिना जांच के किसी की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी परंतु पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को निष्प्रभावी कर दिया है। बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2018 को मंजूरी दी। यह संशोधन 1989 के मूल कानून में होगा। विधेयक को कानून का रूप देने के लिए संसद के मौजूदा मानसून सत्र में ही पेश किया जा सकता है। विधेयक को मंजूरी की जानकारी केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने दी। हालांकि फैसलों की जानकारी देने के लिए बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद सत्र चालू होने की वजह से विधेयक के प्रावधानों का ब्योरा देने से इनकार कर दिया।
मोदी सरकार ने क्यों लिया फैसला
एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में 2 अप्रैल को हुए भारत बंद में काफी हिंसा हुई थी। 15 से ज्यादा लाेग भी मारे गए थे। दलित संगठनों ने एक बार फिर 9 अगस्त को भारत बंद का आह्वान कर दिया है। देश के 4 राज्यों, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव आ गए हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव भी हैं। ऐसे में दलित वोटों का भारी नुक्सान संभावित है। भाजपा के दलित सांसद और गठबंधन सहयोगी भी फैसला पलटने के लिए अध्यादेश लाने का दबाव बना रहे थे।केंद्र ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी, लेकिन अभी उस पर कोई परिणाम सामने नहीं आया है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक का इंतजार नहीं किया
एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग का आरोप लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को इसके कई प्रावधानों पर शर्तें जोड़ दी थीं लेकिन कैबिनेट ने बुधवार को मंजूर विधेयक में कानून का सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले का स्वरूप बहाल करने को मंजूरी दे दी।
एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने क्या बदलाव किए थे
शिकायत मिलते ही एफआईआर दर्ज नहीं होगी। पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा कि कोई केस बनता है या आरोप झूठे हैं।
तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी। सरकारी कर्मियों की गिरफ्तारी के लिए सक्षम अथॉरिटी की मंजूरी जरूरी। जो सरकारी कर्मी नहीं, उन्हें गिरफ्तार करने को एसएसपी की इजाजत जरूरी है।
एससी-एसटी एक्ट के आरोपियों भी अग्रिम जमानत का अधिकार है।
मोदी सरकार ने अब क्या कर दिया
संशोधित कानून में आरोपी पर एफआईआर दर्ज करने के लिए प्राथमिक जांच की जरूरत नहीं होगी। मंजूरी जरूरी नहीं।
संशोधित विधेयक की प्रस्तावना में कहा है कि गिरफ्तार करने या नहीं करने का अधिकार जांच अधिकारी से नहीं छीन सकते। यह क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत मिला है, जिसमें प्राथमिक जांच का प्रावधान नहीं है।
आरोपी अग्रिम जमानत नहीं ले सकता।
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