ये रहा सिंधिया समर्थकों का सामंतवाद: कभी लालबत्ती में घुमाया, अब बकरियां चराने छोड़ दिया | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। जूली आदिवासी की कहानी ने एक बार फिर शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा में यादव और रघुवंशी के सामंतवाद को ताजा कर दिया। इन दिनों बकरियां चरा रही यह आदिवासी महिला कभी शिवपुरी की जिला पंचायत अध्यक्ष थी। राज्यमंत्री का दर्जा, लालबत्ती कार और सरकारी बंगला। अब प्रति बकरी 50 रुपए प्रतिमाह की दर पर मजदूरी कर रही है। दरअसल, जूली आदिवासी कोलारस में यादव और रघुवंशी के सामंतवाद का जिंदा उदाहरण है। सामंतवाद यानि इंसान को यूज करके फेंक देने की राजनीति। विकास नहीं, सिर्फ ताकत और फायदे के लिए लोगों को उपयोग करने की राजनीति। 

सिंधिया के आशीर्वाद से इलाके पर राज करते थे ये नेता
2005 में शिवपुरी जिला पंचायत अध्यक्ष का पद आरक्षित हो गया था। माधवराव सिंधिया का आशीर्वाद प्राप्त कांग्रेस नेता रामसिंह यादव की कोलारस इलाके में तूती बोलती थी। इनके अलावा बैजनाथ सिंह यादव और लाल सिंह यादव भी यहां के कुछ ऐसे नेता थे जो एक तरह से इलाके के सामंत की स्थिति में थे। पुलिस से लेकर प्रशासन तक सब इनके इशारों पर नाचता था। कांग्रेस में वीरेन्द्र रघुवंशी ने भी सिंधिया भक्ति से कुछ ऐसा ही मुकाम हासिल कर लिया था। 

5 साल तक बेचारी हुकुम बचाती रही
लोकल मीडिया से आ रहीं खबरों के अनुसार जिला पंचायत के चुनाव हुए तो जूली आदिवासी को रामसिंह यादव ने जिला पंचायत सदस्य बनवा दिया। फिर वीरेन्द्र रघुवंशी ने अपनी चाल चली और जूली आदिवासी को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवा दिया। टारगेट आदिवासियों के प्रति प्रेम या उनका विकास नहीं था। लक्ष्य था एक ऐसे व्यक्ति को इस कुर्सी पर बिठाना जो इशारों पर काम करे। जूली आदिवासी को समझ ही नहीं थी। वो तो बस हुकुम बजाती रही। नेताओं की चालाकी देखिए कि 5 साल सत्ता में रहने के बावजूद इन्होंने जूली आदिवासी को राजनीति की प्राथमिक जानकारियां तक नहीं दीं। बेचारी मजदूर थी और अब भी मजदूर ही है। 

दिग्गजों ने सरकारी आवास तक नहीं दिलाया
जूली इन दिनों गांव की 50 से अधिक बकरियों को चराने का काम कर रही हैं और उनके अनुसार उन्हें प्रति बकरी 50 रुपए प्रतिमाह की आय होती है। जूली का कहना है कि मजदूरी के लिए गुजरात सहित अन्य प्रदेशों में भी जाना पड़ता है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली जूली का कहना है कि उन्होंने रहने के लिए इंदिरा आवास कुटीर की मांग की थी, जो उसे स्वीकृत तो हुई लेकिन मिली नहीं, इस कारण वह एक कच्ची टपरिया में रह रही है। अब जबकि मामला चुनाव से पहले उठ गया है, कोई बड़ी बात नहीं कि किसी अज्ञात बीमारी से जूली आदिवासी की असमय मृत्य भी हो जाए। लोग बताते हैं कि इस इलाके में ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं। 
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