नई दिल्ली। जजों की नियुक्ति के मामले में परिवारवाद का मुद्दा अब चर्चा का विषय बन गया है। केन्द्र सरकार ने पहली बार लिखित तौर पर इस मामले को लेकर अपनी राय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से साझा की है। हालांकि, न्यायाधीशों का मानना है कि यह गंभीर चिंता नहीं है, बशर्ते उचित विचार के बाद नाम की सिफारिश की गई हो।
केन्द्र सरकार ने साफ तौर पर लिखा है कि कैसे वकीलों और मौजूदा एवं रिटायर्ड जजों के संबंधियों के नामों की अनुशंसा की जाती है। उदाहरण के तौर पर, इलाहाबाद हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजी गई 33 अनुशंसाओं में से कम से कम 11 वकीलों और उनके संबंधों का जिक्र केंद्र सरकार ने किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा फरवारी में भेजी गई 33 वकीलों की लिस्ट को अपनी जानकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को सौंपा था।
इसी मुद्दे पर ETV BHARAT से बातचीत करते हुए रिटायर्ड जस्टिस एएन मित्तल (पूर्व जज और यूपी लॉ कमीशन के चेयरमैन) का कहना है कि मेरे हिसाब से यह कोई गंभीर विषय नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज का बेटा या रिशतेदार होने से एक अभ्यासरत वकील को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि, अगर कोई वकील अच्छा काम कर रहा है, तो उसे किसी अन्य वजहों से नकारा नहीं जा सकता है। न्यायमूर्ति एएन मित्तल ने कहा, 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग, यह अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया था। इसे उच्च न्यायालय के कॉलेजियम के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय कालीजियम के द्वारा एक स्वतंत्र समिति द्वारा भेजे गए नामों की जांच करने के लिए पास किया गया था।
उन्होंने आगे कहा कि, मेरी राय है कि, प्रक्रिया के ज्ञापन को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जाना चाहिए और नियुक्ति पारदर्शिता आधार पर की जानी चाहिए।'
इसके अलावा, न्यायाधीशों की नियुक्तियों में अनियमित देरी, मामलों की लचीलापन दर में वृद्धि कर रही है। यह विषय न्यायिक प्रणाली के लिए चिंता का विषय है। जनता अपने अधिकारों से अवगत है।
उन्होंने आगे कहा कि, देश में निश्चित रुप से न्यायधीशों की कमी है और मुकदमा दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने बताया कि, इसकी एकमात्र वजह है, जनता का जागरूक होना। देश की जनता अपने अधिकारों से अवगत है। उन्हें न्यायपालिका पर पूर्ण विश्वास है। उन्होंने कहा कि अगर उनकी शिकायतों को अधिकारियों और राजनीतिक क्षेत्रों द्वारा हल नहीं किया जा रहा है, तो निश्चित रूप से उन्हें अदालतों से संपर्क करना होगा।
बता दें कि, मोदी सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसके तहत मौजूदा रिटायर जजों के साथ कैंडिडेट्स के संबंधों को भी अपने निष्कर्षों में शामिल किया है। केंद्र का मानना है कि, अन्य सक्षम वकीलों को भी बराबर का मौका मिले, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के साथ परिवारवाद की यह व्यापक विवरण साझा की गई है।
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