राजनीति जरूरी है या राहत, एक बड़ा सवाल देश के सामने खड़ा है। वर्तमान पर्यावर्णीय हालातों में मौसम की मार देश का कोई भी हिस्सा कभी भी झेल सकता है। भीषण बारिश और बाढ़ से जूझ रहे केरल के हालात तो राष्ट्रीय राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गए हैं, ऐसे में वहां राहत और बचाव कार्यों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम रहना क्षुद्रता के अलावा और कुछ नहीं है। कुछ राजनीतिक दलों को यह माहौल बनाने में ही सुख मिल रहा है कि केंद्र सरकार केरल की अनदेखी कर रही है? जो राजनीतिक दल ऐसी शिकायतें करने में लगे हुए हैं कि केंद्र सरकार की ओर से केरल को पर्याप्त सहायता नहीं दी जा रही है, वे यह देखने के लिए तैयार नहीं कि सेना और अर्धसैनिक बलों का करीब-करीब प्रत्येक अंग केरल की हर संभव तरीके से सहायता करने में जुटा हुआ है।
केंद्र ने हालात को देखते हुए वहां राहत एवं बचाव दलों की संख्या भी बढ़ाई है। इसी तरह जरूरी राहत सामग्री भी भेजी जा रही है और फौरी तौर पर सहायता राशि भी उपलब्ध कराई है| न केवल केंद्र सरकार की ओर से, बल्कि विदेश, विभिन्न् राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों के साथ अब तो आम लोग भी अपनी-अपनी तरह से केरल की सहायता करने में जुट गए हैं।इस सबके बावजूद ऐसे स्वर सुनाई देना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि केरल के बाढ़ प्रभावित लोगों की समुचित सहायता नहीं की जा रही है।
अब प्रश्न केरल की आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया जाए या नही ? आपदा प्रबंधन अधिनियम में किसी प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए अब तक कोई प्रावधान नहीं है। इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि देश में आने वाली हर आपदा से राष्ट्रीय आपदा की तरह निपटा जाएगा। बदलते हालात में यह संशोधन जरूरी है आरोप- प्रत्यारोप की जगह राजनीतिक दलों की इन मुद्दों पर सहमत होकर काम करना चाहिए।
यहाँ यह समझना होगा कि ऐसी किसी घोषणा मात्र से केरल के लोगों का भला नहीं होने वाला। राष्ट्रीय आपदा की घोषणा के बाद भी तो केरल में वह सब करने की जरूरत रहेगी, जो वर्तमान में किया जा रहा है। आज जरूरत इस बात की है कि बारिश और बाढ़ से जूझ रहे केरल के नागरिकों को भोजन, पानी, आश्रय आदि प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराया जाए। फिलहाल ऐसी ही कोशिश हो रही है। इसमें कुछ कमी हो सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केरल की उपेक्षा की जा रही है, लेकिन यह घटना हो या कोई अन्य ऐसे मुद्दों पर राजनीति बंद होना चाहिए और बदलते परिवेश में आपदा प्रबन्धन अधिनियम पर समग्र रूप से राजनीति से उपर उठकर विचार भी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।