आम आदमी पार्टी, इतने इस्तीफे क्यों? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

आम आदमी पार्टी के एक  और नेता आशुतोष के पार्टी से इस्तीफे की घोषणा से यही लगता है कि आंतरिक ढांचे में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस इस्तीफे को स्वीकार करने से इनकार करके यही संदेश देने की कोशिश की है कि यह असंतोष से उपजी स्थिति नहीं है और इसका हल निकाल लिया जाएगा। पार्टी के कुछ अन्य नेताओं ने भी आशुतोष के फैसले से असहमति जताते हुए उनसे इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया है। इन प्रतिक्रियाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि इसी मुद्दे पर पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति की भावी बैठक में भी इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया जाएगा। पर यह तब तक के राजनीतिक घटनाक्रमों के साथ-साथ आशुतोष पर निर्भर होगा कि वे अपने फैसले को लेकर क्या सोचते हैं।

वैसे आम आदमी पार्टी में आशुतोष की हैसियत एक बड़े नेता की रही है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इस सवाल पर चर्चा होगी कि अचानक उनके पार्टी छोड़ने के निर्णय के पीछे क्या कारण होंगे। दरअसल, आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद आशुतोष ने जब दिल्ली की चांदनी चौक सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, तो उसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। लेकिन इसी साल की शुरुआत में राज्यसभा के लिए जब पार्टी की ओर से तय तीन नामों में भी उन्हें जगह नहीं मिली, तभी से उन्हें असंतुष्ट माना जा रहा था। एक तरह से उन्होंने इस मसले पर अपनी नाराजगी जाहिर भी की थी। मगर पार्टी ने शायद उनकी अपेक्षाओं को ज्यादा तरजीह नहीं दी। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके पार्टी की राजनीति से बाहर आने की ये वजहें हो सकती हैं।  इस्तीफे के लिए आशुतोष ने खुद जिस तरह निजी कारणों का हवाला दिया, फिलहाल उसे ही ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके बावजूद यह सवाल उठता है कि २०१४  में पत्रकारिता से सक्रिय राजनीति में आने के बाद उन्होंने इतने कम समय में बाहर आने का फैसला क्यों किया?

वैसे यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी बड़े नेता ने आम आदमी पार्टी को छोड़ा हो। इससे पहले कई ऐसे मौके आए जब इसके संस्थापक सदस्यों तक ने पार्टी में मनमानी होने और असहमतियों को जगह नहीं मिलने की शिकायत को आधार बना कर पार्टी छोड़ दी। आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपनी अलग स्वराज पार्टी भी खड़ी की। जाहिर है, आशुतोष के इस्तीफे को उन पूर्व सदस्यों ने पार्टी में एक प्रवृत्ति के तौर पर देखा है। ऐसे में हर मौके पर यह सवाल उठा कि भारतीय राजनीति में एक बेहतर और ईमानदार लोकतंत्र का विकल्प देने का वादा  वाली पार्टी अपने आंतरिक ढांचे में इन कसौटियों पर कहां खड़ी है? ऐसे आरोप भी लगाए गए कि पार्टी में सिर्फ कुछ लोगों का खयाल रखा जाता है, जिसके चलते जनता के मुद्दों से सरोकार रखने वाले नेताओं की उपेक्षा होती है। लेकिन आमतौर पर इस तरह की किसी शिकायत का संतोषजनक जवाब सामने नहीं आया। सवाल है कि क्या पार्टी के भीतर महत्त्वाकांक्षाओं के टकराव में ऐसे पक्ष हावी हैं, जिनके चलते पिछले कुछ सालों के दौरान पार्टी के कई नेताओं ने अलग होना बेहतर समझा। आशुतोष का इस्तीफा  भी उसी शृखला की एक कड़ी है। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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