जिस दुष्यंत कुमार की पंक्तियों से BJP सत्ता में आई, उसी का संग्रहालय गिरा रही है | BHOPAL NEWS

भोपाल। 'हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये।' पिछले 35 साल में भाजपा के बड़े-छोटे नेताओं ने लाखों-करोड़ों बार अपने भाषणों में दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को दोहराया है। केवल यही नहीं 'सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नही, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये।।' यह पंक्तियां भी करोड़ों बार दोहराई गईं। सत्ता में आने तक​ भाजपाईयों ने इन पंक्तियों पर कॉपीराइट सा कर लिया था। यहां तक कि संसद में भी ये पंक्तियां दोहराईं गईं। यदि रायल्टी वसूली जाए तो यह 300 करोड़ से कम नहीं होगी। जिस महान कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियां सुना-सुना कर भाजपा ने लोगों को लुभाया, आज वही भाजपा सरकार उसी महान कवि दुष्यंत कुमार का एकमात्र संग्रहालय गिरा रही है। पिछली दीवार गिरा दी गई है। धमकी दी है कि यदि खाली नहीं किया तो अंदर रखा सामान भी तहस नहस कर दिया जाएगा। 

कहां और किस हाल में है यह संग्रहालय
साउथ टीटी नगर में खडा है मकान नंबर एफ 50/17, इस मकान तक पहुंचना आसान नहीं है क्योंकि चारों तरफ बडे गडढे खुदे है, उन गढढों को कूदतें फांदते उलांघने पर ही आप पहुंच पाते हैं इस मकान तक। जिसे सरकार ने 'दुष्यंत कुमार स्मारक और पांडुलिपि संग्रहालय' नाम दिया है। पिछले तेरह साल से इस छोटे से एफ टाइप सरकारी घर मे चल रहा था। इससे पहले इसी इलाके में बने दुष्यंत कुमार के पुराने मकान को सरकार गिरा चुकी है। 

क्या रखा है इस संग्रहालय में
यहां जाने माने साहित्यकारों के लिखे दस्तावेज, उनकी पांडुलिपियां, उनसे जुडे सामान जैसे टाइपराइटर, घडियां और पेन तो हैं ही ढेर सारी किताबों का भी संग्रह भी सालों से इस चार कमरे के मकान मे सिमटा हुआ है। संग्रहालय की गतिविधियां बढाने के नाम पर यहां की दहलान में एक छोटा सा हाल और वाचनालय भी बना लिया गया था जिसमें छोटे मोटे साहित्यिक कार्यक्रम और कभी कभी नाटक की रिहर्सल भी होती रही है। 

क्यों तोड़ा जा रहा है यह संग्रहालय

बेदखली का नोटिस तो पिछले साल आ ही गया था क्योंकि इस जगह पर सरकार का स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट विकसित हो रहा है। जिसके लिये स्मार्ट सिटी कंपनी इस पूरी जमीन को अपने कब्जे में लेकर पहले मैदान कर रही है फिर बीच शहर में बने इस मैदान पर तनेंगीं उंची स्काइराइस बिल्डिंगें और आलीशान माल। उस सब में कहां का संग्रहालय वैसे भी बाजार पुरानी चीजों से मोह नहीं करता। बाजार को हर दम नया और चमकदार ही चाहिये जिसकी कीमत मिले। 

21 साल पहले राजुरकर राज के घर से शुरू हुआ था यह संग्रहालय
कुछ सिरफिरे जो गुजरी हुयी पुरानी चीजों में ही जिंदगी तलाशते हैं। बताना चाहते हैं नयी पीढी को कि कैसे रहते थे हमारे साहित्यकार, कैसी उनकी लिखावट थी कैसे उनके हाथ की छाप थी कैसे वो चिटिठयां लिखते थे कैसे थे वो लोग जिन्होंने जो रच गये वो अमर पंक्तियां जो आज भी गायी जातीं हैं।
सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नही, 
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये।। 
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, 
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये।।।
अमर कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों से ही प्रेरणा लेकर राजुरकर राज ने इस संग्रहालय को इक्कीस साल पहले अपने घर से ही शुरू किया था। हाल के दिनों में पेन्क्रियाज के ट्यूमर में सोलह किलो वजन गंवाने के बाद वो इन दिनों सहारे से चलते हैं मगर पूरे वक्त इस पांडुलिपियों और संग्रहालय के सामान की चिंता में और दुबले हुये जा रहे हैं। 

अब पत्रकार ब्रजेश राजपूत भाग-दौड़ कर रहे हैं 

भोपाल को यूं ही सोलह संग्रहालयों का शहर नहीं कहा जाता। दो दशक पुराना ये संग्रहालय भोपाल को उनकी ही देन है। पिछले साल सितम्बर में एबीपी न्यूज के घंटी बजाओ कार्यक्रम के लिए ब्रजेश राजपूत संग्रहालय की बेदखली पर स्टोरी करने गए थे। 'टीआरपी की भूखी मीडिया' कहने वालों के लिए यह जोरदार तमाचा है, क्योंकि ब्रजेश राजपूत ने टीआरपी के लिए स्टोरी नहीं की बल्कि संग्रहालय की रक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम भी बढ़ाए। कुछ ऐसे जो संग्रहालय की जिंदगी के लिए जरूरी थे। 

शिवराज सिंह ने फिर कहा 'हो गई है पीर...' लेकिन कोई गंगा नहीं निकली

ब्रजेश राजपूत जैसे पत्रकार ने स्टोरी की थी। एबीपी न्यूज में दिखने का मौका था अत: मंत्री विश्वास सारंग निकल पड़े संग्रहालय का दौरा करने। बाइट देनी थी इसलिए कहा: कि संग्रहालय में रखी बेशकीमती धरोहरों को हिफाजत से रखने जगह दी जायेगी। उसके बाद हिंदी दिवस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मंच से दुष्यंत जी की जानी पहचानी गजल की लाइनें पढीं कि 
हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये..
मगर कोई गंगा निकली नहीं, इस बीच में तकरीबन एक साल गुजर गया। स्मार्टसिटी वाले आए और बिना चेतावनी दिए संग्रहालय का पीछे वाला हिस्सा गिरा गए। 

मंत्री ने कहा 6000 रुपए में विरासतें संभाल लो
पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने पता किया तो देखा सब कुछ कागजों पर ही चल रहा है धरातल पर अब तक कोई मकान अलोट नहीं हुआ जिसमें इस धरोहर को सम्हाल कर रखा जा सके। राजपूत एक बार फिर मंत्री सारंग के पास पहुंचे। कोई साहित्यकार आया होता तो चाय पिलाकर चलता कर देते परंतु ब्रजेश राजपूत थे। इसलिए उन्होंने स्मार्ट सिटी के अफसरों से बात की और फिर कहा जब तक आपको स्मार्ट सिटी में शिफ्ट नहीं किया जाता तब तक आप किराये का मकान ले लें। सरकार प्रतिमाह 6000 रुपए किराया देगी। सवाल यह है कि 6000 रुपए के किराए में संग्रहालय कैसे बनाएं। इतने में तो संग्रहालय का स्टोर भी नहीं बनता। 

मामला सीएम शिवराज सिंह तक पहुंचाया

पिछले दिनों पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने यह मामला सीएम शिवराज सिंह तक पहुंचाया। संग्रहालय की स्थिति बताई और वादा भी याद दिलाया। अब एक बार फिर दुष्यंत कुमार की यादें ताजा हो रही हैं। लोग एकजुट हो रहे हैं। बात कर रहे हैं और शायद सरकार को भी शर्म आ जाए। 
पक गईं हें आदतें बातों से सर होगीं नहीं..
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं..
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !