अंबानी तो व्यापारी हैं, और आप ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

मुकेश अंबानी का रिलायंस समूह मुनाफे के लिए ही बना है। सड़क, मेट्रो, बिजली, तेल, क्रिकेट, स्कूल, अस्पताल, मोबाइल ऐसा कौन सा काम है, जिसमें उन्होंने हाथ डाला और उन्हें मुनाफा न हुआ। अब तो यह साबित हो गया है कि “वरदहस्त प्रबन्धन” में भी उनकी महारत है। अब कोई अंबानी उद्योगों पर कैसे सवाल कर  सकता है, जब प्रधानमंत्री खुलकर इस घराने के समर्थन में आ गये हो। रिलायंस ने जियो क्रांति देश में की, तो उसके विज्ञापन में प्रधानमंत्री की फोटो थी। किसी निजी कंपनी के विज्ञापन में देश के प्रधानमंत्री को माडल की तरह पेश करना था। ऐसे काम प्रधानमंत्री की मर्जी के बगैर हुए होंगे एक प्रश्नचिंह है। मोदी सरकार ने उनकी भावी शैक्षणिक संस्था को अभी से उत्कृष्ट संस्थानों में शामिल कर लिया है। अमित शाह ने कभी गांधीजी के लिए चतुर बनिया विशेषण का इस्तेमाल किया था। वो मुकेश अम्बानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

क्या प्रधान मंत्री यह नहीं जानते हैं कि मुकेश अंबानी जो भी काम करेंगे, वह मुनाफे वाला ही होगा, इसलिए उन्होंने जिस जियो इंस्टीट्यूट को स्थापित करने की योजना बनाई है और जो अगले 2-3 सालों में अस्तित्व में आएगी, परन्तु उसे देश के 6 उत्कृष्ट संस्थानों में अभी से शामिल कर लिया है। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इंस्टीट्यूट आफ एमिनेंस में देश के ६  उत्कृष्ठ संस्थानों का ऐलान किया है, उनमें आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बंबई, आईआईएससी बेंगलुरु, मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, बिट्स पिलानी के साथ जियो इंस्टीट्यूट का भी नाम है। 

हर साल मानव संसाधन विकास मंत्रालय देशभर के इंस्टीट्यूट की रैंकिंग भी कराता है, इसे राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग ढांचा (एनआईआरएफ) कहा जाता है। जियो के अलावा पांचों अन्य उत्कृष्ट संस्थानों के बारे में देश जानता है। लेकिन जियो इंस्टीट्यूट तो अभी केवल कागजों में ही शायद है। मंत्रालय तक को इसके बारे में  ज्यादा कुछ नहीं पता है, उसे इसकी कोई तस्वीर भी नहीं मिली, इसलिए उत्कृष्ट संस्थानों के ऐलान में जियो इंस्टीट्यूट के लिए रिलायंस फाउंडेशन के पोस्टर से काम चलाना पड़ा। जो अस्तित्व में है ही नहीं, उसे अच्छा या बुरा कैसे कहा जा सकता है? सरकार ने सफाई में जो तर्क गढे है, वो जियो की तरफदारी में गढ़े हैं | सरकार का कहना हा नये आवेदनों का चार मानकों के आधार पर मूल्यांकन किया गया- संस्थान बनाने के लिए जमीन की उपलब्धता, संस्थान के लिए उच्च शिक्षा और अच्छे अनुभव वाली कोर टीम, संस्थान स्थापित करने के लिए फंड की स्थिति और एक्शन प्लान।

सरकार के अनुसार जियो इंस्टीट्यूट को ही सभी चारों मानकों पर खरा उतरा पाया तो उसे इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस की लिस्ट में शामिल किया गया। बेशक मुकेश अंबानी के जियो इंस्टीट्यूट में दुनिया भर की खासियतें रहेंगी, उनके पास न धन की कमी है, न संसाधनों की। रिलायंस का स्कूल हो या अस्पताल उसमे समाज के उच्च वर्ग [धनवान] ही  जा पाते हैं, उसी तरह यहां भी अमीरों में अमीर विद्यार्थी ही पढ़ने आएंगे | ये तो  व्यापारी हैं, उन्हें पूरा हक है कि वे अपना व्यापार चाहे जैसे चलाएं। प्रश्न भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री से है कि क्या इस तरह की चाटुकारिता से देश में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधर जाएगी?

सरकार बेहतरीन शिक्षण संस्थानों की सूची बनाते समय यह क्यों नहीं देखती कि उसके कितने संस्थान निकृष्टतम सूची में शामिल हो चुके हैं। कितने कालेजों, विश्वविद्यालयों में शिक्षकों, संसाधनों, सुविधाओं की कमी है। कितने कैम्पस केवल छात्रों के आक्रोश का अड्डा बन चुके हैं? हजारों-लाखों बच्चों पर कुछ सौ शिक्षक हैं, क्या इनसे उच्च शिक्षा की सूरत बदलेगी? कदापि नहीं, बल्कि इस तरह की पक्षधरता देश के शिक्षा जगत में हीनता का वातावरण निर्मित करेगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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