शिवराज सरकार प्राइमरी में फेल, 42 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी | MP NEWS

भोपाल। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के 6 साल बाद भी मध्य प्रदेश सरकार सभी को शिक्षा देने का लक्ष्य प्राप्त करने में विफल रही है। शिवराज जानबूझकर सरकारी शिक्षा तंत्र को खत्म करना चाहते है। 2010 से 2016 के बीच 7284 करोड रुपए का बजट जारी ही नहीं किया गया। जो बजट जारी किया गया उस में से भी 1200 करोड़ प्रदेश सरकार द्वारा खर्च नहीं किया गया। यही कारण है कि सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के शिक्षा स्तर में भारी गिरावट आई है। यह बात आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने कही।

सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट हिंदी तक नहीं पढ़ पाते
अग्रवाल ने बताया कि भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने पिछले दिनों शिक्षा गारंटी कानून को लेकर जारी रिपोर्ट में चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। रिपोर्ट में सामने आया है कि 84 प्रतिशत बच्चे 8वीं में होने के बावजूद 1-9 तक के नंबर तक नही पहचान पा रहे हैं और 51 प्रतिशत छात्र हिंदी पढ़ लिख नही पाते हैं। सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ रहे पांचवीं के 75 फीसदी छात्र हिंदी वर्णमाला को पढ़ने लिखने में अक्षम पाए गए हैं और 77 प्रतिशत छात्र 1 से 9 तक के नंबर तक नही पहचान पा रहे हैं।

45 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं : 
प्रदेश में 70% बच्चों में खून की कमी है, 45% बच्चे कुपोषित है। खून की कमी और कुपोषण से मानसिक विकास रुक जाता है। उसके बाद शिक्षा को बर्बाद करके शिवराज जी ने मध्य प्रदेश की एक पूरी पीढ़ी बर्बाद कर दी है। शिवराज को अपने को मामा कहलाने का कोई हक्क नहीं है, वह इस रिश्ते को गन्दा कर रहे हैं।

शिक्षकों के 63 हजार से ज्यादा पद खाली
कैग रिपोर्ट के अनुसार, 2010-11 से 2015-16 के बीच खराब शिक्षा प्रणाली के चलते प्रदेश के 42.86 लाख छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी। प्रदेश में शिक्षको की भारी कमी है। 2016 मार्च तक प्रदेश में 63,851 से पद खाली है। प्राथमिक शाला में 37,933 पद खाली है और माध्यमिक शाला में 25,918 पद खाली है, और तो और जिन शिक्षको की भर्ती 2010 से 2016 के बीच की गई है उनमें से ज्यातर को प्रशिक्षण नही दिया गया है।

ये भी खुलासे आए सामने
शिक्षा अधिकार कानून के अनुसार किसी भी स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक नहीं हो सकता।
कानून का उल्लंघन करते हुए 18, 213 स्कूलों में सिर्फ 1 शिक्षक है।
22,987 स्कूलों में छात्र/कक्षा का अनुपात ख़राब है।
32,703 स्कूलों में छात्र/शिक्षक अनुपात ख़राब है।
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